श्रीरामः शरणं समस्तजगतां रामं विना का गती, रामेण प्रतिहन्यते कलिमलं रामाय कार्यं नमः।
रामात् त्रस्यति कालभीमभुजगो रामस्य सर्वं वशे, रामे भक्तिरखण्डिता भवतु मे राम! त्वमेवाश्रयः।।
(स्कंदपुराण, उत्तरखण्ड, रामायण माहात्म्य – १/१)
अर्थात् – श्रीरामचन्द्र समस्त संसार को शरण देनेवाले हैं, श्रीरामचंद्र के विना कौन सी गति है ? श्रीरामचंद्र कलियुग के समस्त दोषों को नष्ट कर देते हैं, अतः श्रीरामचंद्र जी को नमस्कार करना चाहिए, श्रीरामचंद्र जी से कालरूपी भयंकर सर्प भी डरता है, जगत का सबकुछ भगवान श्रीरामचंद्र जी के वश में है, श्रीरामचंद्र जी में मेरी अखंड भक्ति बनी रहे, हे राम ! आप ही मेरे आधार हैं।
सनातन सभ्यता का नव युग में पुंह प्रवेश हो गया, हमें एक ऐतिहासिक एवं गौरवशाली क्षण का साक्षी होने का महान सौभाग्य प्राप्त हो रहा है। राम राज्य की स्थापना के लिए हम सदैव तत्परता से प्रयत्नशील रहें। ऐसे संकल्प के साथ आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं। जय जय श्रीराम।🚩
सादर सहित!
डॉ. मन्टु कुमार
सहायक सचिव, लॉयर्स एसोसिएशन
सह-संयोजक, भाजपा, विधि प्रकोष्ठ
पटना हाई कोर्ट इकाई