स्वार्थ में डूबा मोह

मैंने देखा है स्वार्थ सदा

स्वार्थ में डूबा मोह सदा।

रहा ना सृष्टि में निश्छल भाव,

बना स्वार्थी मन कपट कपाट।

कृपण बनकर दान करे

अहंकार से क्षुधा तृप्त करे ।

भ्रमित हो रहा स्व कर्म जाल से ,

हो गया भयाकुल अकर्म जाल से ।

मंदिर में नित करे परिक्रमा

सद व्यवहार की करे भर्त्सना ।

दीप जलाए नित करे अखंड आरती,

नित गाए मृदु मंजुल मंगल भरती।

पग पग पर पूजा करवाए

तेंतीस करोड़ देव मनवाए

ना करे स्त्री में जननी कल्पना

देखें सब में विषय वासना ।

स्वयं को कहता मानव है ,

बन गया वस्तुत: दानव है।

© अभिलाषा शर्मा 🤷🌷

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Published by
Abhilasha Sharma

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