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संकट में बाघ /जंगल

जानवरों को सुरक्षा के लिए हम कितने प्रतिबद्ध हैं , यह आज के झूठे वादे और वाचन वाद में अक्षरतः स्पष्ट होता है।भारत और अन्य देशों में हमारे पर्यावरणीय जीवन को स्वस्थ और संतुलित बनाने वाले जीव हमारे जीवन में कितने महत्वपूर्ण हैं इसका विश्लेषण करना कठिन है ।आज मानव जाति धरती के हर कोने पर अपना प्रभुत्व स्थापित करती जा रही है।

बढ़ती जनसंख्या धरती पर स्थाई रूप में पर्यावरणीय प्रभाव को पूरी तरह से पीड़ित और प्रभावित कर रही है। जीवन तेज गति से पनप रहा है लेकिन इसके एक ओर जहां दूसरा जीवन अपने जीवन के लिए त्राहिमाम कर रहा है।और वह है जंगल का जीवन ।जंगल आज मानव जाति से पूरी तरह त्रस्त हैं ।बाघ संरक्षण दिवस राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय रूप में 29 जुलाई को मनाया जाता है । हमारे देश कम होती बाघों की आबादी ने चिंता का विषय प्रकट किया है । हमारे देश में कुल 50 से 53 बाघ अभयारण्य हैं जो हमें अपनी ओर आकर्षित करते हैं।

घटता बाघों का स्तर से पूरा eco system खतरे में है। नेशनल और इंटरनेशनल के आधार पर भारत में ही सबसे अधिक बाघ पाए जाते हैं। कुछ भी कह लो पर एक वस्तु की अधिकता से उपयोग किए जाने से दूसरी वस्तु का क्षय होना स्वाभाविक ही है । यही हो रहा है हमारी धरती पर । मानव बढ़ रहे हैं । जंगल घट रहे हैं।जंगली पशु कुपोषण का शिकार हो रहे हैं ।बीमार हो रहे हैं । कहीं पानी का अभाव है तो प्यासे मर रहे हैं । कहीं जहरीले पानी का शिकार हो रहे हैं । जंगल जल रहे हैं । सूखे से बचे कुचे मैदान झुलस रहे हैं । भूख मार रही है ।जीवन के लिए इतना बड़ा संघर्ष जिसमें बहुत से जीव जीवन से हार मान जाते हैं । प्रकृति है तभी जन जीवन है । हमे जंगलों के प्रति अपना उत्तरदायित्व समझना होगा । अपना स्वार्थ भाव पीछे रखकर परोपकार के लिए आगे बढ़ना होगा ।

जंगलों में तैनात किए गए हर अधिकारी को उनके जीवन के प्रति जागरूक होना होगा।सरकार को चाहिए की वह ऐसे ही लोगों को जंगलों की सेवा के लिए तैयार करे जिनमें कर्तव्य की भावना दृढ़ हो , आलस्य न हो, निडर हो, सहनशीलता हो , दया भाव हो ,जीवों के लिए प्रेम हो , सेवा सत्कार हो। तभी संभव है कि कुछ हद तक हम अपने जंगलों के जीवन को बचा पाएं।कुछ स्वार्थी और पैसे के लालची अधिकारी जंगल में पशुओं का सौदा कर लेते हैं उन्हें बेच देते हैं ।जैसे हाथी दांत के लिए हाथियों की हत्या , बाघ चर्म के बाघ को मारना ,हिरण की हत्या ,आदि बहुत से अपराध हैं जो जंगलों में किए जा रहे हैं और देश सो रहा है । देश की नींद तभी खुलती है जिस दिन त्यौहार मनाया जाता हैं नहीं तो सालभर गहरी नींद में ही सोया रहता है ।

अब 15 अगस्त आने वाला है लोगों की नींद खुलने वाली है ।तो भारत को ऐसी जागरूकता नहीं चाहिए जो खाने के समय ही जागे ।जागना तो हर समय का है ।तो आइए प्रकृति को प्रेम दें उसके भक्षक नहीं रक्षक बनें ।जीवों की रखा हमारा परम कर्तव्य है और धर्म है ।

लेखक :अभिलाषा शर्मा

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