योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण ने शरद पूर्णिमा की रात ही गोपियों के साथ महारास के रूप में लीला रचाई थी। मान्यता अनुसार जब श्री कृष्ण महारास में निमग्न थे, उसी समय चंद्रदेव आकाश से मंत्रमुग्ध, लालायित हो भगवान की लीला निहार रहे थे। इसी क्रम में चंद्रमा इतने भाव विह्रल हो उठे कि उनको शुद्ध ही नहीं रही और वे अपनी शीतल ज्योत्सना के साथ पृथ्वी के अत्यंत निकट आ गए और उस पर अमृत वर्षा करने लगे। तब से लेकर आज तक हर शरद पूर्णिमा को महारास के अवसर पर चंद्रमा की किरणें उसी प्रकार अमृत वर्षा करती है और सांसारिक प्राणियों को विविध प्रकार के वरदान अनुदान से परिपूर्ण करती है।
शरद पूर्णिमा को कोजागरी व्रत भी कहा जाता है। इसका तात्पर्य है कौन जाग रहा है?
कहते हैं कि माता लक्ष्मी को परम प्रिय ब्रह्म कमल पूरे वर्ष में सिर्फ इसी दिन पुष्पित होता है माता लक्ष्मी ने द्वापर युग में श्री राधा के रूप में जन्म लिया था। इसी कारण कुछ लोग इस दिन श्री राधा जयंती मनाते हैं। गुजरात में जहां इस रात्रि को लोग गरबा खेलते हैं, वही मणिपुर में भी भक्तगण रास रचाते हैं। ओडिशा और पश्चिम बंगाल में पूरी विधि विधान से लक्ष्मी पूजन किया जाता है ।