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विशेषता होगी, तभी पराए अपने बन जाएँगे और शत्रुओं को मित्र । DntvIndiaNews

 सद्गुण” बढ़ाएं, “सुसंस्कृत” बनें

मनुष्य के पास सबसे बड़ी पूजा सद्गुणों की है। जिसके पास जितने सद्गुण हैं, वह उतना ही बड़ा अमीर है। धन के बदले बाजार में हर चीज खरीदी जा सकती है। इसी प्रकार सद्गुणों की पूँजी से किसी भी दिशा में अभीष्ट प्रगति की जा सकती है । जिसके भीतर सद्गुणों की पूंजी भरी पड़ी है, “आत्मबल” और  “आत्मविश्वास” उसे दैवी सहायता की तरह सदा प्रगति का मार्ग दिखाते हैं। 

अपने मधुर स्वभाव के कारण वह जहाँ भी जाता है. वहीं अपना स्थान बना लेता है। अपनी विशेषताओं से वह सभी को प्रभावित करता है और सभी की सहानुभूति पाता है। दूसरों को प्रभावित करने और अपनी सफलता का प्रधान कारण तो अपने सदगुण ही होते हैं। जिसके पास यह विशेषता होगी, उसके लिए पराए अपने बन जाएँगे और शत्रुओं को मित्र बनने में देर न लगेगी । जीवन का आधार स्तंभ सदगुण हैं। अपने गुण-कर्म-स्वभाव को श्रेष्ठ बना लेना, अपनी आदतों को श्रेष्ठ सज्जनों की तरह ढाल लेना, वस्तुतः ऐसी बड़ी सफलता है, जिसकी तुलना किसी भी अन्य सांसारिक लाभ से नहीं की जा सकती। सद्गुणों के विकास का उचित मार्ग यह है कि उन्हीं के संबंध में विशेष रूप से विचार किया करें, वैसा ही पढ़ें, वैसा ही सुनें, वैसा ही कहें, वैसा ही सोचें जो सद्गुणों को बढ़ाने में, सत्प्रवृत्तियों को ऊंचा उठाने में सहायक हों। सद्गुणों को अपनाने से अपने उत्थान और आनंद का मार्ग कितना प्रशस्त हो सकता है, इसका चिंतन और मनन निरंतर करना चाहिए।

अंदर सद्गुणों के जितने बीजांकुर दिखाई पड़ें, जो अच्छाइयाँ और सत्प्रवृत्तियाँ दिखाई पड़ें, उन्हें खोजते रहना चाहिए। जो मिलें उन पर प्रसन्न होना चाहिए और उन्हें सींचने-बढ़ाने में लग जाना चाहिए। घास-पात के बीच यदि कोई अच्छा पेड़-पौधा उगा होता है, तो उसे देखकर चतुर किसान प्रसन्न होता है और उसकी सुरक्षा तथा अभिवृद्धि की व्यवस्था जुटाता है, ताकि उस छोटे पौधे के विशाल वृक्ष बन जाने से उपलब्ध होने वाले लाभों से वह लाभान्वित हो सके। हमें भी अपने सद्गुणों को इसी प्रकार खोजना चाहिए। जो अंकुर उगा हुआ है, यदि उसकी आवश्यक देखभाल की जाती रहे तो वह जरूर बढ़ेगा और एक दिन पुष्प-पल्लवों से हरा-भरा होकर चित्त में आनंद उत्पन्न करेगा।

 हम सज्जन बनेंगे, श्रेष्ठताएँ बढ़ाएँगे, सद्गुणों का विकास करेंगे, यही अपनी आकांक्षाएँ रहनी चाहिए।

सद्गुण यदि थोड़ी मात्रा में भी अपने अंदर मौजूद हैं तो भविष्य में उनका विकास होने पर अपना भाग्य और भविष्य बहुत ही उज्ज्वल होने की कोशिश सहज ही की जा सकती है। *माना कि आज अपने अंदर सद्गुण कम हैं, छोटे हैं, दुर्बल हैं, पर यही क्या कम है कि वे मौजूद हैं और यह क्या कम है कि हम उन्हें बढ़ाने की बात सोचते हैं। संसार में कोई विभूति ऐसी नहीं जो तीव्र आकांक्षा और प्रबल पुरुषार्थ के आधार पर प्राप्त न की जा सकती हो। सद्गुणों की बहुमूल्य संपत्ति मानव जीवन की सबसे बड़ी विभूति मानी जाती है। उसे प्राप्त करना कठिन तो है, पर कठिनाई उन्हीं के लिए है जो उधर ध्यान नहीं देते। जिन्होंने अपने मन और मस्तिष्क को श्रेष्ठता का महत्त्व समझने और उसे प्राप्त करने के लिए अभिमुख कर रखा है, उन्हें उनका लक्ष्य प्राप्त होगा ही, वे श्रेष्ठ-सज्जन बनकर अपने को परम भाग्यशाली अनुभव करेंगे ही।