“धर्मयुद्ध में विजय का मार्ग: विनम्रता और धैर्य”
सुबह मेघनाद और लक्ष्मण के बीच अंतिम युद्ध होने वाला था। वह मेघनाद, जो अब तक अविजित था, जिसकी भुजाओं के बल पर रावण युद्ध कर रहा था। वह अप्रतिम योद्धा, जिसके पास सभी दिव्यास्त्र थे।
सुबह लक्ष्मण जी भगवान राम से आशीर्वाद लेने गए।
उस समय भगवान राम पूजा कर रहे थे।
पूजा समाप्ति के पश्चात प्रभु श्रीराम ने हनुमान जी से पूछा:
“अभी युद्ध शुरू होने में कितना समय है?”
हनुमान जी ने कहा:
“प्रभु, अभी कुछ समय है। यह तो प्रातःकाल है।”
भगवान राम ने लक्ष्मण जी से कहा:
“यह पात्र लो और भिक्षा मांगकर लाओ। जो पहला व्यक्ति मिले, उसी से कुछ अन्न मांग लेना।”
सभी बड़े आश्चर्य में पड़ गए। आशीर्वाद की जगह भिक्षा! लेकिन लक्ष्मण जी को जाना ही था।
लक्ष्मण जी जब भिक्षा मांगने के लिए निकले, तो उन्हें सबसे पहले रावण का एक सैनिक मिल गया। आज्ञा अनुसार उन्हें उससे भिक्षा मांगनी ही थी। यदि भगवान की आज्ञा न होती, तो लक्ष्मण जी उस सैनिक को वहीं मार देते। परंतु वे उससे भिक्षा मांगते हैं।
सैनिक ने अपनी रसद से लक्ष्मण जी को कुछ अन्न दे दिया।
लक्ष्मण जी वह अन्न लेकर भगवान राम को अर्पित कर देते हैं।
तत्पश्चात भगवान राम ने उन्हें आशीर्वाद दिया: “विजयी भव।”
भिक्षा का मर्म किसी की समझ में नहीं आया। कोई पूछ भी नहीं सकता था। फिर भी यह प्रश्न तो रह ही गया।
फिर भयंकर युद्ध हुआ।
अंत में मेघनाद ने त्रिलोक की अंतिम शक्तियों को लक्ष्मण जी पर चलाया – ब्रह्मास्त्र, पाशुपतास्त्र। इन अस्त्रों की कोई काट नहीं थी।
लक्ष्मण जी ने सिर झुकाकर इन अस्त्रों को प्रणाम किया। सभी अस्त्र उन्हें आशीर्वाद देकर वापस चले गए।
उसके बाद राम का ध्यान कर लक्ष्मण जी ने मेघनाद पर बाण चलाया। वह हंसने लगा, परंतु उसका सिर कटकर धरती पर गिर गया और उसकी मृत्यु हो गई।
उसी दिन सन्ध्याकाल में भगवान राम शिव की आराधना कर रहे थे। वह प्रश्न अब भी रह ही गया था। हनुमान जी ने पूछ लिया:
“प्रभु, वह भिक्षा का मर्म क्या है?”
भगवान मुस्कराए और बोले:
“मैं लक्ष्मण को जानता हूं। वह अत्यंत क्रोधी है। लेकिन युद्ध में बहुत विनम्रता की आवश्यकता पड़ती है। विजयी तो वही होता है, जो विनम्र हो।
मैं जानता था कि मेघनाद ब्रह्मांड की चिंता नहीं करेगा। वह युद्ध जीतने के लिए दिव्यास्त्रों का प्रयोग करेगा। इन अमोघ शक्तियों के सामने केवल विनम्रता ही काम आ सकती थी। इसलिए मैंने लक्ष्मण को सुबह झुकने की शिक्षा दी।
एक वीर और शक्तिशाली व्यक्ति जब भिक्षा मांगेगा, तो विनम्रता स्वयं प्रवाहित होगी। लक्ष्मण ने मेरे नाम से बाण चलाया था। यदि मेघनाद उस बाण के सामने विनम्रता दिखाता, तो मैं भी उसे क्षमा कर देता।”
भगवान श्रीरामचन्द्र जी एक महान राजा के साथ अद्वितीय सेनापति भी थे। युद्धकाल में विनम्रता शक्ति संचय का मार्ग है और वीर पुरुष को शोभा भी देती है। इसलिए किसी भी बड़े धर्मयुद्ध में विजय प्राप्ति के लिए विनम्रता और धैर्य का होना अत्यंत आवश्यक है।
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