प्रसन्नता प्राप्ति का अद्भुत रहस्य| “प्रसन्नता” प्राप्ति का मुख्य रहस्य यह है कि जितने परिमाण में समाज की अंतरात्मा को हमारे कार्य प्रसन्न करेंगे उतनी ही प्रसन्नता का बोध हमें होगा ।
अपनी उत्कृष्ट कला, बुद्धि, कौशल या पुरुषार्थ परायणता से जब दूसरे लोग प्रसन्न होते हैं, तब हमें भी प्रसन्नता होती है । “वास्तविक प्रसन्नता” का मूल रहस्य दूसरों की अंतरात्मा की प्रसन्नता में निहित है । परोपकारी एवं सेवाभावी सहज इसे प्राप्त करता रहता है ।
सद्भावनाएँ ही प्रसन्नता की जननी है । आंतरिक पवित्रता, निर्मलता और स्वच्छता से प्रसन्नता सहज रूप में आती है । महापुरुषों की सतत् प्रसन्नता का कारण उनकी आंतरिक पवित्रता एवं शुद्धता है । उनकी निर्मल हँसी से दु:खी एवं क्लेश युक्त व्यक्ति प्रसन्न हुए बिना नहीं रहते । उनके आसपास का वातावरण भी वैसा बना रहता है । इसलिए प्रसन्नता प्राप्ति के उद्देश्य की पूर्ति तभी हो सकती है जब अपना अंतर स्वच्छ से स्वच्छतर बनता जाएगा । जब अपने आंतरिक क्षेत्र में घृणा, अनुदारता, स्वार्थपरता के आवरण हटेंगे और सबके लिए प्रेम, उदारता, सद्भाव उत्पन्न होंगे तो प्रसन्नता की संभावना भी निकटस्थ होती जाएगी ।
गुण दोष से रहित मनुष्य मिलना दुर्लभ है । प्रत्येक मनुष्य में दीपक के प्रकाश और छाया की तरह गुण-दोष विद्यमान हैं । छाया का अस्तित्व भी प्रकाश के साथ साथ हैं । छाया दोष मनुष्य के साथ है । अतः किसी के गुण दोषों से प्रभावित न होकर सबका आदर करने पर प्रसन्नता मिल सकती है । प्रसन्नता की प्राप्ति के लिए उदार बनना चाहिए । सबसे हृदय खोलकर मिलना, सभी का स्वागत मुस्कान से करें । मुस्कान अपनी ही दुर्भावनाओं को मिटाती है ।
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