चलो सफ़र शुरू करते हैं
क्या छूट गया क्या बिखर गया
उसको लाकर दिल के रास्ते होटों से बयां करते हैं..
तारीख कुछ ऐसी थीवो वक्त आज भी याद है मुझे
धुंधला गया है वक्त लेकिन जुबां का दर्द वही याद है मुझे
चला था जब उस अंजान सफ़र पर
निकले थे अनकहे लफ्ज़ जो आजतक है अनसुलझे
मैं सोया हुआ था उस दरम्यान गहरी अंधेरी रात में
रातों के जुगनू मुझे समझा रहे थे क्यूं खोया है इस दो पल की चांदनी में
ये बतला रहे थे मिट जाएगी ये हर ओर छाई कहीं चांदनी
और कहीं अंधेरे की कसक में मत डूब इतना की तु ,
तू ही ना रहे…
वक्त बीत गया मैं आ पहुंचा आज फिर उसी मुहाने पर
सफर के
जहां शुरू किया था मैंने खुद को मिटाकर जीतने का सफ़र
आज ना सफ़र है ना जीतने की ललक
सिर्फ मेरे कदमों के निशा बाक़ी हैं
मैं हार गया हूं ,वक्त जीत गया है
वक्त से कौन लड़ सका है
जिसने भी इसको हाथ से छुआ है
वह मिट गया है मिटकर फिर से उठ खड़ा हुआ है
रचनाकार : अभिलाषा शर्मा