वो_अक्षर_पुष्प_को_पढ़_रही_है
वो अक्षर पुष्प को पढ़ रही है
जैसे निज सौंदर्य को बढ़ा रही है
कान के झूमर में घंटियों का शोर है
जैसे मौन अध्ययन से हृदय में प्रातः की भोर है
पुष्प के समान खुद को पढ़ रही है
जैसे गुप्त में अभिव्यंजना कोई कर रही है
हृदय के जाल में शब्दों के अश्व दौड़ा रही है
कर रही अलंकृत निज को शब्दों के अलंकार से
कर रही भ्रमण, विस्मृत मन शब्दों के संसार में
लगता है शब्द सिंधु ने उसको डुबो लिया है
या गिरती पलकों ने ही शब्द सिंधु को ढक लिया है
ये पुस्तक पढ़ती है या पुस्तक इसको पढ़ती है
ये निर्णय मुश्किल सा बना दिया है …
रचनाकार :Abhilasha Sharma
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