ई०सन 1996-97 की बात है , जब स्व.अचलेश्वर मिश्रा जी रायपुर(म०प्र०) में थे। उस समय वहाँ पर क्वार्टर न०-232/c शैलेंद्र नगर में श्री शिवशंकर पाण्डेय(एग्रीकल्चर के उच्च पदाधिकारी) के घर रहते थे। वे एक दिन श्री अचलेश्वर मिश्रा जी से बोले कि- मिश्राजी आपको सहकारी मार्ग-2, मकान न०- 6 चौबे कॉलोनी में चलना है। वहाँ पर मेरा एक मित्र रहता है! जिनका नाम है श्री रामचन्द्र तिवारी। दोनों व्यक्ति उस मित्र के घर गये। तीनों व्यक्ति आपस में मिलकर बहुत देर तक विहंगम योग के साधना पर बातचीत किये। श्री रामचन्द्र जी के एक छोटी लड़की थी जिसका नाम था रानी जो दुर्गा जी का परम भक्त थी। वह प्रतिदिन दुर्गासप्तशती का पूर्ण पाठ करके ही अन्न-जल ग्रहण करती थी। और शिक्षा के लिए M. A की पढ़ाई कर रही थी। वह बहुत देर तक इस वार्तालाप को सुनती रही। सुनने के बाद उससे रहा न गया और आकर बोली कि मुझे भी विहंगम योग की साधना चाहिए! श्री अचलेश्वर मिश्रा जी उस लड़की से सारा परिचय लिया। परिचय लेने के बाद उन्होंने पूछा कि तुम तो दुर्गा जी का परम भक्त हो। तुम इस साधना को क्यों लेना चाहती हो ?
तब उस लड़की ने अपना सारा रहस्य खोलकर रख दिया!उस लड़की ने बताई कि”- मैं बचपन से ही दुर्गा जी का पूजापाठ करते आ रही हूँ। वह स्वप्न में रोज हमसे बात भी करती है! उनसे मैं जो भी वस्तु मांगती हूँ ! वह पूर्ण कर देती है। एक दिन मैं दुर्गा जी से बोली कि-“हे माँ! यदि तुम मुझ पर इतना प्रसन्न हो तो मुझे इस दुनिया से मुक्त कर दो ” तब वह माँ दुर्गा बोली कि-हे बेटी ! मैं दुनिया की सारी सम्पति तुझे प्रदान कर सकती हूँ , पर मुक्त नहीं कर सकती। मुक्ति के लिए तुम्हें ब्रह्मज्ञानी गुरु के पास जाना होगा। वही तुम्हे मुक्त करेंगे।
तब वह लड़की बोली कि वह मुक्ति दाता ब्रह्मज्ञानी गुरु कहाँ मिलेंगे ? तब माँ दुर्गा बोली कि एक दिन उस ब्रह्मज्ञानी गुरु के संदेशी दूत तुम्हारे घर आएंगे उनके बातों को पहचान कर शिघ्र मिलना तुम्हारा काम बन जाएगा। लड़की बोली कि हे बाबा जी! मैं उसी संकेत पर आपसे मिलने आई हूँ, आपको मैं पहचान गई हूँ, आप ब्रह्मज्ञानी गुरु के संदेशी दूत है। आप मुझे ब्रह्मज्ञान का उपदेश करें । पं. अचलेश्वर मिश्रा जी उस लड़की के सारे बातों को सुनकर बहुत आश्चर्य किये। उन्होंने कहा कि तुम्हारा उपदेश हम विधिवत ढंग से करना चाहते है। कल तुम अपने पापा के साथ ब्रह्ममुहूर्त में मेरे क्वार्टर पर आना। वह लड़की दूसरे दिन ब्रह्ममुहूर्त में अपने मम्मी-पापा के साथ मिश्राजी के क्वार्टर पर पहुँची। मिश्राजी ने उसे विधिवत ढंग से विहंगम योग के प्रथम भूमि का ज्ञान दिया। साथ मे उसकी मम्मी भी उपदेश लिया। और कहा कि तुम घर जाकर कम से कम 10-10 मिनट सुबह-शाम अभ्यास करना। मैं कुछ दिन बाद फिर तुमसे मिलने आऊँगा। वह लड़की उपदेश लेकर अपने घर चली गई।
श्री अचलेश्वर मिश्राजी करीब 15 दिन बाद साधना के विषय मे हालचाल जानने के लिए फिर उस लड़की के घर गये। मिश्राजी ने पूछा कि रानी बेटी तुम्हारी साधना कैसी चल रही है ? तब उस लड़की ने अत्यन्त प्रसन्नता के साथ बताई कि- “बाबा मुझे जो स्वामी जी का चित्र दिये है वह तो बिल्कुल ही सजीव है। ऐसा लगता है कि वह चित्र हमसे बात कर रहा है। साधना काल मे जो भी मेरे मन मे सवाल उठता है ! उसका जवाब वह तत्काल दे देते हैं। और उसका समाधान भी बता दे देते हैं”। जब मिश्राजी यह पूछे कि तुम्हारी साधना कैसी चल रही है और अब तुम्हारी दुर्गा माँ क्या कहती है ? तब रानी ने जोर से हँसकर बोली कि-” मेरी माँ बहुत प्रसन्न है। वह बोली कि अब तुम्हारी जीवन सफल हो जाएगी। और मुझे प्रथम कोटि की सारी उपलब्धियां प्राप्त हो गई है ! इसका शब्द सुनाई पड़ता है। अचलेश्वर मिश्राजी ने अपने मन मे सोचा कि यह लड़की तो पूर्व जन्म की संस्कारी लगती है। उन्होंने उसी समय उसको दूसरी कोटि का उपदेश कर दिया। तब से वह अपने साधना में निरन्तर लगी रही और आगे का पढ़ाई भी जारी रखी। उसकी माँ को भी प्रथम कोटि की साधना में बहुत शीघ्र सफलता मिल गई थी। उसको भी दूसरी कोटि का उपदेश कर दिया गया था। बोलिये सद्गुरु देव की जय
यह संस्मरण अपने शब्दों में लिखी गई है। (पुस्तक का नाम-स्वामी जी के महाप्रयाण के बाद|
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