इंसान बड़ा कमबख्त बन गया
न देखें उसने दर्द मेरे
मै मरता और मरता चला गया ।
।मै बना हर पल का साथी
फिर भी तूने मुझ पर प्रतिघात किया ।
मै शांत हूं निश्छल निष्पापी हूं
तू बन गया कुटिल अपराधी है।।
तू बना शत्रु मैं बना मित्र
तू हो ना सका तृप्त कभी ,
मै हो रहा विलुप्त अभी ।
।तूने देखा निज – स्वार्थ सदा
मै खड़ा रहा परमार्थ हितु ।
मै वृक्ष हूं तू व्यर्थ है
यही मेरी करुण व्यथा है ।।
रचनाकार : अभिलाषा शर्मा 🌼