मैंने सुना है
वो रात के किनारों पर
सुनसान अकेली राहों पर
मेरे क़दमों में देखि है मैंने
वो फड़कती कोंधतीबिजली सी
जैसे मैं नहीं चलता
जैसे बहता हूँ मैं
इन सन्नाटों की साँसों में
कदम तो थे चलने के एहसास नहीं
साँसे तो थी पर धड़कन का एहसास नहीं
मैं चलता था उन रातों को
बस खुद से खुद की बातों में
जब देखता था मैं निज को
स्वयं के मन दर्पण को
कल्पना करती निज नेत्रों में
साकार उस अद्भुत चित्रण को
कल्पना के दर्पण से
मेरी यात्रा आरम्भ हुई
सौन्दर्य के अरण्य में
मेरी वार्ता प्रारंभ हुई
जब देखता हूँ स्वयं को
प्रत्यक्ष ही उन तीक्ष्ण कटीली राहों पर
हो जाता हूँ निस्तब्ध कभी मैं
कभी विचार बिंदु के सागर में
यही तो मेरा आयाम बना
जिसको मैंने निज हेतु निर्माण किया
आज खड़ा हूँ …….
जैसे निज को जड़ चला हूँ …|
अभिलाषा भारद्वाज {मेरी कलम मेरी अभिव्यक्ति }