मुसाफिर हूँ
अपना सफर है
अपनी ही कहानी लिखता हूँ ……
जो छिपी है ,तुझमें असीम गहराइयाँ
उसमें डूब खो जाना चाहता हूँ
मुसाफिर हूँ ……
तेरे खामोश सन्नाटों में उतर
मेरे अल्फाजों की सहर देखता हूँ
फिसलते हुए रस्ते अनकही वादियाँ बने हैं
साथ चलकर अपने, उन्हें टटोलना चाहता हूँ ……
मुसाफिर हूँ.
सफर की हसीं दांस्ता , बयां करना चाहता हूँ
मुसाफिर हूँ
अपना सफर है
अपनी ही कहानी लिखता हूँ ……
अभिलाषा {मेरी कलम मेरी अभिव्यक्ति }