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मिट्टी की तरह बनकर देखो {लघु कविता}Abhilasha Bhardwaaj

मिट्टी एक जीवन स्वरुप 

 मिट्टी की तरह बनकर देखो

 हर सांचे में ढलकर देखो 

पलती है कर्मठ धरणी पर

करने समर्पण जीवन को

दाहकता में जलती है……

मिट्टी की तरह बनकर देखो

जन्म मरण में साथ चलती है

ना तजती निज स्वाभिमान को

हर रूप स्वरुप में एक ही रहती है

मिट्टी मिट्टी है रोम रोम

प्राणी तेरी भी काया अंत काल

इसमें  ही तो मिलती है……

मिट्टी की महिमा अपरम्पार

बिन मिट्टी जीवन सूना निस्सार 

मिट्टी खाए ताने ब्रह्माण्ड रचाया

मूंह माहीं अंड खंड माया भरमाया

मिटटी की तरह बनकर देखो 

हर सांचे में ढलकर देखो …….

{मेरी कलम मेरी अभिव्यक्ति }अभिलाषा