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माघ पूर्णिमा शुक्ल पक्ष विक्रम संवत २०८० शनिवार संत रविदास जयंती SANT RAVIDAAS JAYANTI

||जात पात पूंछे नहीं कोई ,हरी को भजे सो हरी को होई ||
समता व् प्रेम के मूलक महानसंत स्वामी श्री रविदास जी अंपने समय की एक दिव्य ज्योति थे |
संत श्री रविदास जी

भारत के महान संत श्री रविदास जी के जीवन वृतांत के सम्बन्ध में वैसे तो कुछ स्पस्ट समय का उल्लेख नहीं है परन्तु फिर भी इतिहास में वर्णित काल के अनुसार उनका जन्म १३७७ में बनारस में माघ मॉस की शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि को हुआ था एसा माना  जाता है शिक्षा प्रेम ,समता और दया के प्रतीक संत श्री रविदास जी की माता का नाम श्री मती कलसी देवी और पिता का नाम श्री संतकोश दास था 
बाल्यकाल से  ही रविदास बड़े विनम्र और शांत प्रक्रति के थे रविदास के पिता चमड़े का काम करते थे | अपने पिता के अनुरूप रविदास भी बाल्यकाल से अपने पिता का हाथ बटाते थे  रविदास अपना काम करते हुए भी एक दम शांत भाव से रहते थे |अक्सर शांति की इसी भावना के कारण रविदास अक्सर गंगा किनारे अकेले बैठा करते थे |उनको बचपन ही साधू और सूफी संतो के साथ रहना उनके उपदेशों को सुनना और चिंतन करना ये सब ही रविदास के आध्यात्मिक गुण थे |

युवावस्था आने पर उनका विवाह भी कर दिया गया |उनके पुत्र का नाम विजयदास था |रविदास जी के जीवन काल में समाज में बहुत कुरीतियाँ थीं | छुआ छूत ,अन्धविश्वास ,ढोंग पाखंड आदि इन सब सामाजिक बुराइयों ने समाज को ऐसे जकड़े हुआ था जैसे की जल में उतरे हुए  किसी इंसान को ग्राह अपने दाँतों के बीच फसा  लेता है  और निगल जाता है |उस समय स्त्रियों को नीच भाव से देखा जाता था |यह सब देखकर रविदास बड़े ही व्यथित होते थे | अपने हृदय की वेदना को वे माता गंगा के आकर सब सुना देते थे यह सत्य है की संत रविदास मां गंगा के बहुत बड़े भक्त थे |उनके जीवन काल में महँ भक्ति मति मीराबाई जो भगवान् श्री कृष्ण की अनन्य भक्त थीं उन्होंने संत रविदास को अपना गुरु बनाया |और उनसे ही शिक्षा दीक्षा लाकर मीराबाई वृन्दावन भगवान् श्री क्रष्ण के दर्शन हेतु चली गईं |श्री रामानंद जी संत रविदास जी के गुरु थे |इस सम्बन्ध एक बड़ी ही रोचक प्रसंग है |रविदास जी का जन्म नीच कुल में हुआ था जिस कारण से कोई भी ब्राहमण और संत उन्हें शिक्षा देने और अपना शिष्य बनाने से इनकार कर दिया करते थे |

तब रविदास ने युक्ति सुझाई श्री रामानन्द जी नित्यप्रति गंगा स्नान को गंगा तट पर आया करते थे ,म्फिर क्या था रविदास जी गंगा जी के तट पर सीढियों पर उलटे होकर लेट गए जैसे रामंनद जी स्नान करने के बाद ऊपर तट पर आने लगे तब सीढियों पर लेटे हुए रविदास पर उनका पैर लग गया और उनके मूह से निकला अरे ……राम राम राम….उसी क्षण रविदास ने रामानंद जी पैर पकड लिए और हठ पूर्वक  विनय की प्रभु मुझे अपना शिष्य बना लीजिये नहीं तो ये रविदास यहीं गंगा के तट अपने शीश  को पटक पटक कर अपने प्राण त्याग देगा रामानंद ने करुना वश रविदास को उठाया और अपने कंठ से लगाया अपना शिष्य बनाया संत रविदास एक महान संत होने के साथ दर्शनशास्त्री, कवि, समाज-सुधारक थे. उन्हें संत रविदास, गुरु रविदास, रैदास और रोहिदास जैसे नामों से जाना जाता है.

उनकी कुछ अनमोल पंक्तियाँ जो आज भी हम सबके लिए शिक्षा और प्रेरणा का श्रोत हैं:

 मन चंगा तो कठौती में गंगा।

. ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन

,पूजिए चरण चंडाल के जो होवे गुण प्रवीन।

 जन्म जात मत पूछिए, का जात और पात।

रैदास पूत सम प्रभु के कोई नहिं जात-कुजात।।

 ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन,

पूजिए चरण चंडाल के जो होने गुण प्रवीन।।

रविदास जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच,

नर कूं नीच करि डारि है, ओछे करम की कीच।

कह रैदास तेरी भगति दूरि है,भाग बड़े सो पावै.

तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै.

रविदास जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं

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