वो समझता रहा गुनहगार मुझे मेरी आखिरी सांस तक
मेरे दर्द का एहसास सिर्फ मेरे दिल को ही था
मै बेकसूर था बस वक्त का ही इल्जाम था
मैंने कभी मुहब्बत में उसको रुलाया नहीं था
सिर्फ चाहत थी उसके कुछ वक्त की जो मेरे मुकद्दर में नहीं था
इस वक्त ने स्वार्थी भी बना दिया
मुहब्बत की कदर ने मुझे जाहिल बना दिया
मुझे उसको समझाने का हुनर ना आया
मैंने हर बार खुद को नाकाम ही पाया
मैं पूंछ ता रहा अपने खुदा से
ए मेरे मेरे खुदा मेरा दिल भी तो उसी के जैसा था
फिर क्यूं उसको तरस ना आया
मै करता रहा इंतजार उसकी वफ़ा का आखिरी सांस तक
मेरे जाने का दर्द हुआ उसको मेरे जाने के बाद
भर आईं आंखें उसकी मेरे फना होने के बाद
अब कोई ख्वाहिश बाकी नहीं
इस बेमुरिद दर्द के शहर में
रचनाकार :अभिलाषा शर्मा
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