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“प्रेम एक सफल यात्रा” Story अभिलाषा भारद्वाज

प्रेम एक सफल यात्रा

40 साल पहले इस आदमी ने बाइक खरीदने के लिए अपना सकुछ बेच दिया था । और भारत से स्वीडन तक 60,000 किलोमीटर की यात्रा अपने प्रेम को देखने के लिए की ।

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प्रेम पथ कभी सरल नहीं होता 

जैसे त्याग बिना आत्म संधान नहीं होता ।

अंधियारे पथ पर दीप स्वयं दीप ज्वलंत होते हैं।।

किन्तु प्रयास हीन उद्देश्यों में कहां विज्ञान होता है

प्रेम पथ कभी सरल नहीं होता …

कमलनयन निर्मल नीर बहा ही देते हैं

जल बिना अर्पण संस्कार नहीं होता

हृदय कुंभ भावावेग में बह ही जाता है

भावहीन हृदय में प्रेम परिष्कार नहीं होता 

पग में कंटक शूल भी स्थूल बन जाते हैं

नग्नता बिना आत्म धरा पर प्रेम विहार नहीं होता …!!

प्रेम के संबंध में कितना भी वर्णन किया जाए , वह अभिव्यक्ति से परे ही  रह जाता है । प्रेम को जितना चाहो उसकी कामना उतनी ही प्रबल हो ती है ।

प्रेम मात्र कुछ शब्दों में बंधा व्यवहार नहीं ,प्रेम तर्क का भी विषय नहीं है ,प्रेम आत्मा का अस्तित्व है ।

प्रेम बन्धन रहित किया गया वह मंथन है जिसमें आत्मा मुक्त हो जाती है प्रेम स्वतंत्र है – कोई बंधन तंत्र नहीं ।

प्रेम करना सरल हो सकता परन्तु प्रेम का पालन उतना ही दुष्कर है । प्रेम जब हृदय से फूटता है, तो विष में प्राणों का आभास होता है 

प्रेम है तो सब कुछ है 

प्रेम बिना तो जल भी मौन है 

प्रेम की सुंदर सुंदरता में 

जल मीन जैसा दर्पण कौन है

प्रेम है तो सब कुछ है…!!

अन्यथा कहां फ़िर सृष्टि में श्रृंगार है 

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अभी तक हम ना जाने कितने ही ऐतिहासिक ,पौराणिक प्रेम कथाएं सुनते आए हैं । अनादि काल से प्रेम धारा ज्यों की त्यों समय चक्र के साथ निरंतर प्रवाहमान और गतिशील है।

इस ब्रह्माण्ड में सूक्ष्म और दृश्यमान आकर्षण के   कारण कण – कण गतिमान और ऊर्जावान है।प्रेम  ही प्रकृति है । जैसे नदियां, पर्वत , झील , सिंधु , महाद्वीप ,जीव जंतु , दिशाएं ,जल , वायु आदि सभी तो इस प्रेम के  कारण ही पारस्परिक रूप में एक दूसरे से  अभिन्नता से बंधे हुए हैं । और अपने अपने स्वभाव से कर्तव्य पथ पर  गतिमान हैं । इस ब्रह्माण्ड की निर्मित हर वस्तु उस एक परम सत्ता द्वारा रचित कि गई है ।

वह प्रेम स्वरूप है प्रेम ही इस जगत का कारण है । प्रेम की सुंदर सुंदरता में राधा और कृष्ण हैं , और भी न जाने कितने ऐसी महान विभूतियां आईं जिन्होंने प्रेम के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित किया है । जो आज हम सबके प्रेरणा स्रोत बने हैं । प्रेम के विभिन्न भाव और रूप हैं  एक सेनापति का अपने राज्य के लिए प्रेम और राजा के लिए पूर्ण समर्पण , राजा के लिए अपने देश राष्ट्र के लिए बलिदान , त्याग भाव रूप प्रेम ,वीर का अपने लक्ष्य के प्रति प्रेम , पुत्र का अपने माता पिता के लिए प्रेम , पति पत्नी का पारस्परिक प्रेम , भाई बहन का प्रेम , मित्र का मित्रता के प्रति प्रेम ,और प्रेमी का अपनी प्रेमिका के लिए समर्पण प्रेम । भक्त का अपने भगवान के प्रति , गुरु का अपने शिष्य के प्रति प्रेम। का आशय यही है कि अगर सत्य में प्रेम है तो समर्पण भी अवश्यंभावी है । 

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[] समर्पण ही प्रेम का प्रथम अमूल्य उपहार है !!

यह प्रकृति प्रदत्त आपको श्रेष्ठ अतुलनीय उपहार है!!! []

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कुछ समय पहले आधुनिक काल में प्रेम के इतिहास में जैसे हीर रांझा ,लैला मजनू , रोमियो जूलियट आदि प्रेमी जिन्होंने प्रेम को खुदा ईश्वर  गॉड समझकर उसकी इबादत की प्रेम किया और अपना जीवन अर्पण किया ।

ये ही मुझे प्रेम के सच्चे दर्पण लगते हैं 

प्रेम को पाना और उस मार्ग पर चलना अत्यंत दुष्कर एवम् संघर्षपूर्ण होता है।

[]” प्रेम जब निस्वार्थ होगा 

तो हर शब्द में भावार्थ होगा

वरना आई लव यू कहना बस

लाचार ही होगा “.[]

प्रेम वो शब्द है  जिसे कहने और सुनने की आवश्कता नहीं , प्रेम तो धैर्य है जो सबके बस की  बात नहीं है। 

प्रेम तो स्वा सों के समान है जो हर क्षण आपको स्वयं को बांधे हुए है।

प्रेम विचार से तो सरल है किन्तु मार्ग अज्ञात है जिसे ढूंढ़ पाना अति कठिन है। प्रेम निः शब्द है शब्द नहीं ।

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[] यह घटना 40साल पहले की है जो कि प्रेम के प्रसंग में है ,उस व्यक्ति ने अपना सब कुछ बेच दिया और एक साइकिल खरीदने के लिए । अपनी प्रेमिका को देखने के लिए भारत से स्वीडन तक 60,000 मिल की यात्रा तय की । यह एक प्रेम कहानी है एक भारतीय पुरुष और एक युवा स्वीडिश महिला के मध्य प्रेम की । समस्त बाधाओं को पार करने के बाद आज भी यह  खूबसूरत जोड़ी साथ में जीवन जी रहे हैं । 

प्रद्युम्न महा नंदिया का जन्म 1949 में भारत के सुदूर गांव में एक अछूत के रूप में हुआ था । भविष्यवाणी में बताया गया कि प्रद्युम्न का विवाह समय आने पर दूर देश की महिला संगीतकार  से होगा जो राशि चक्र के तहत पैदा हुई है । एक वृष राशि का  दूसरा जंगल का स्वामी है । कुमार ने ज्योग्राफिक को बताया कि ” मुझे भविष्यवाणी में बहुत अधिक विश्वास था और मुझे यह ज्ञात है कि इस गृह पर सब कुछ पूर्व से ही योजनाबद्ध है। 

उनकी यात्रा 17 दिसंबर 1975 को शुरू हुई थी । 

जब एक भविष्यवाणी एक वास्तविक कहानी बन गई । उस समय कुमार एक स्ट्रीट आर्टिस्ट थे । जब एक नीली आंखों वाली खूब सूरत गोरी महिला , जिसका नाम शार्लोट वान शेडविन ।

उसने कुमार को अपना एक चित्र बनाने के लिए कहा । 

जब वह मेरी चित्र फलक के सामने आई तो मुझे ऐसा प्रतीत हो गया कि मेरा कोई वजन ही नहीं है मानो मैं भारहीन हो गया हूं ” । उस भावना को व्यक्त करने के लिए मेरे पास पर्याप्त सटीक शब्द ही नहीं है । उसकी आंखें इतनी बड़ी नीली गहरी और गोल थीं , मुझे लगा जैसे वह मुझे नहीं देख रही थी ,अपितु वह एक्स रे मशीन की तरह मेरे अंदर झांक रही थी। ” मैं घबरा गया और पहली बार अपने सपनों की महिला को सही से खींच नहीं सका । इसलिए मैंने चार्लोट को एक और दिन फिर से वापस आने के लिए कहा ” । वह तीन बार वापस गईं और मैंने तीन चित्र बनाए । बाद में पता चला कि उस रहस्यमय विदेशी महिला का जन्म वृषभ राशि के अनुसार हुआ था जो कि एक जंगल की स्वामी है बांसुरी बजाती है । जैसा कि भविष्यवाणी में बताया गया था

“तुम ही मेरे जीवन साथी बनोगे ,हमारा मिलना तय था , फिर तय हुआ प्रेम का सच्चा सफ़र ” ।

शार्लोट उस समय 19 वर्ष की थीं । वे इस अप्रत्याशित स्वीकारोक्ति से नहीं भयभीत नहीं हुईं और उन्होंने कुमार को बदलने का फैलसा किया । 

शार्लोट के स्वीडन वापस आने तक दोनों ने तीन सप्ताह एक साथ बिताए । प्रेम कहानी यहीं पर खत्म नहीं हो सकती थी और युवा और दृढ़ निश्चय वाले कुमार ने विपरीत परिस्थितियों से निकलने का कठिन फैसला किया ,अपना सब कुछ बेच कर एक साइकिल खरीदी । बहुत कम पैसे रास्ते में मिली लोगों की सहायता से कुमार ने शार्लोट से मिलने के लिए भारत से स्वीडन तक 60,000 मील की यात्रा तय की और अनंत: कामयाब हुए । 

कुमार ने बताया कि – ” इस लंबी यात्रा के मध्य सबसे बाधा मेरे विचार और मेरे संदेहात्मक भ्रम की अवस्था थी “!! 

दो प्रेमियों ने एक पूर्ण भारतीय विवाह को समाप्त कर दिया , और अब 40 वर्षों से अधिक हो चुके हैं , । दम्पत्ति ने दो बच्चों को एक साथ पाला है । 

उनका प्रेम हमेशा की तरह आज भी नवीन है । 

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किसी ने सत्य ही कहा है – अगर किसी को शिद्दत से चाहो ,तो सारी कायनात उसे आपसे मिलाने के लिए लग जाती है । 

मजबूत इरादे ,बुलंद हौंसले की आवाजों से मंजिल शोर मचाती है ।

और लक्ष्य स्वयं प्राप्त हो जाता है 

आज के समय प्रेम के प्रति निष्ठा अतिशय अल्प पाई जाती है । 

ठीक ही है …- आजकल के दिल काग़ज़ की कश्ती पर सवार हैं , ना जाने कब डूब जाएं …!!”

किन्तु सत्य में प्रेम तो …-  प्रेम बहता मौन ही निर्झर और निर्बाध ..!!

पूर्ण प्रेम की अभिव्यक्ति में अल्प सर्व संवाद …!!!

 

संबंध टूटने के बाद लोग नए प्यार और नए रिश्ते को क्यों नहीं ढूंढ़ पाते हैं,

आखि़र कमी कहां रही जा रही है 

 

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 प्रेम इस सृष्टि का सबसे सुंदर और अनोखा शब्द है , प्रेम ही लय और प्रेम ही विलय । प्रेम सृष्टि का श्रृंगार है …प्रेम सृष्टि का आधार है

बिना प्रेम सब कुछ निराधार है । प्रेम प्रतीपल नवीन है । कंटक पूर्ण पथ पर चलना भी उद्देश्य के प्रति आत्मिक प्रेम है ..। प्रेम का कोई स्वरूप नहीं ,प्रेम अनंत है जिस भाव में जिस वस्तु विशेष से प्रेम होता है वह अव्यक्त ही रह पाता है ।

प्रेम वह उस दीप की तरह है ,जब प्रज्वलित हो उठता है तो समस्त जीवन में प्रकाश की किरणें प्रसरित होती रहती हैं । प्रेम वह अनमोल उपहार है जो ईश्वर ने हम सबको किसी न किसी रूप में निश्चय ही प्रदान किया है । 

किसी भी या यूं कह लो हर एक पारिवारिक सामाजिक रिश्ते नाते एवम् बंधनों का एक मात्र आधार सूत्र प्रेम ही है , जो कि इस सृष्टि को अभिन्नता से बांधे हुए है 

आज के इस व्यस्तता भरे हुए युग में हर कोई अपना भिन्न भिन्न क्षेत्रों में वर्चस्व स्थापित करने में दौड़ में शामिल है ।भागदौड़ भरी जिंदगी में हर कोई मात्र धन का अनुसरण करने में ही लगा हुआ है , फिर चाहे वह पुरुष हो या स्त्री ।

आज 21 वीं सदी में मनुष्य इतना वक्त का पाबंद है समय होते हुए भी उसके पास स्वयं के लिए और अपनों के लिए समय नहीं है । और ना ही समय के साथ तालमेल बिठाने की उसको समझ ही है ।

ऐसे समय में यह कहना एक दम उचित ही होगा कि रिश्ते टूट रहे हैं ,और आज का युवा वर्ग उन रिश्तों को संभाल पाने और नवीन रिश्तों में बंध पाने में पूरी तरह अक्षम है ।

कमियों की अगर ध्यान दें तो वह समय के साथ बदलती मानसिकता का कुप्रभाव है , जिसके कारण घर परिवार समाज विलग हो रहे हैं ।

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विवाह के पूर्व की बात करें तो आज 100% में से 80% युवा पुरुष एवम् महिलाएं अपने प्रेम प्रसंगों में अयोग्य पाए जाते हैं , जिसके फलस्वरूप आगे के पारस्परिक सुंदर जीवन की कल्पना ही नहीं करते सकते ।

“रिश्ते माला के मोतियों के समान होते हैं अगर टूट कर बिखर जाएं तो इन्हें झुककर समेट लेना ही बेहतर है ।

वर्तमान युवा पीढ़ी अधिकतर प्रेम प्रसंगों में पड़कर अपने भविष्य को धुंधला कर रहे हैं । अल्प आयु में प्रेम में पड़ जाने पर से अल्प समय में ही वे धोखा , हिंसा ,और तिरस्कार के पात्र बन रहे हैं , जिसके कारण आत्महत्या दर काफ़ी सीमा तक बढ़ती जा रही है ।

आज हर किशोर अप्ल समय में ही प्रेम केंद्र में पाए जाते हैं जिसमें प्रवेश कर लेने के बाद उनका हर क्षण अपने प्रेमी को प्रसन्न करने के आयोजन में व्यतीत होता है । उनके मंहगे उत्पादों से आंनद देना , उपहार देना उनकी इच्छा के अनुरूप कार्य करना , मनोरम स्थानों पर उनको भ्रमण हेतु ले जाना आदि । दुर्भाग्यवश जब इन संसाधनों में अवरोध आता है तो हर जोड़े के संवाद और संबंधों में टकराव आने लग जाता है । और ये छोटे छोटे कारण ही एक विकट परिस्थिति को जन्म देते हैं । जिनके साथ वे अपना जीवयापन करना चाहते हैं । वे ही उनको मध्य में छोड़कर चले जाते हैं।

परिणास्वरूप भयानक मानसिक बीमारी तनाव प्रताड़ना हिंसा आदि के शिकार हो जाते हैं । इस अवसाद का मूल कारण यही है वस्तु विशेष का ज्ञान और महत्व का पता ना होना ।

आकर्षण , अधिक जुनून अधिक वासना आज के वयस्कों की प्रथम समस्या है जिसके देखते हुए वे कभी 

कभी हिंसक आक्रामक बन जाते हैं ।

वर्तमान और भविष्य दोनों ही उनके धूमिल हो जाते हैं ।

विवेचना के आधार पर प्रेम में धोखा खाए हुए लोग इन्हीं विभिन्न कारणों के चलते पुनः उस रास्ते पर चलना नहीं चाहते और ना ही नए रास्ते खोजना चाहते हैं ।

अधिकतर ऐसे लोग अकेलेपन का भी शिकार देखे गए हैं।

जब तक हम परिपक्व एवम् समझदार नहीं बनते तभी तक हम कुछ असफल रिश्तों का सामना करते हैं ।

और वह वस्तु विशेष रिश्ता हमें खिन्न और सुन्न बना देती है । हमारी इच्छाएं और आशाएं भी कम हो जाती हैं ।

हमारी भावनात्मक कल्पनाएं उन लोगों के साथ हमारी शारीरिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए क्षीण सी हो जाती हैं जिनकी हम अब वास्तव में चिंता नहीं प्रकट करते ।

यह जीवन जीने का एक अक्षम्य तरीका है जैसे कि यह संसार सप्त रंगों से संतप्त है किन्तु उनको केवल धूसर ही दिखेगा ।

हाल ही में एक निराशाजनक शब्द देखने में आया है सिट्यूएशन (परिस्थिति) यह एक डेटिंग संबंध शब्द है जो की अपरिभाषित या अप्रति बद्ध है । यह मूल रूप में तब होता है जब या अन्य कोई युगल व्यक्ति बातें कर रहे हैं किन्तु आप वास्तव में युगल नहीं है ।

परिस्थितियां वह क्षेत्र है जहां कोई भी वास्तव में नहीं जानता कि क्या हो रहा है और कोई भी अपने कार्य के प्रति जागरूक विश्वस्त और प्रतिबद्ध नहीं है ।

बड़े दुख की बात है कि बहुत से लोग इन संकर आपदाओं के लिए समझौता भी कर रहे हैं ।

किन्तु यदि विचार किया जाए तो हम बड़े हो गए हैं और हम को और भी अधिक मुखर होने की आवश्यकता है ।

रिश्तों को सही सूत्र में पिरोना सच में एक कला है ।

मैं ऐसे तलाकशुदा लोगों से मिला हूं जो यह कहते हैं कि उन्होंने अपना सब कुछ एक बार पहले दे दिया , जैसे कि वत्तिय सहायता , परिवार को पहले रखना , पत्नियों की मांगों को स्वीकार कर उन्हें पूरी करना ।

अधिकांश महिलाएं सोचती हैं कि उनके बच्चों को उन्होंने ही पाला है जबकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं होता है । परिवार नियोजन , नियंत्रण और मूल्यांकन में दोनों की ही अहम भूमिका पाई जाती है ।

क्यूं और किसलिए कुछ महिलाएं बच्चों की तरह काम करने वाले पुरुषों को अपने जीवन में लाना चाहती हैं ..? यह एक वांछनीय प्रश्न है ..!! 

हर व्यक्ति की सोच विचार अलग ही देखे जाते हैं , कुछ पुरुष अहंकार रूपी अवगुण के …..कारण अपने पारिवारिक जीवन से हाथ धो बैठते हैं ।कुछ महिलाएं अपना ही प्रभुत्व कायम करना चाहती हैं ।

एक व्यक्ति जो कि अपनी जरूरतों के लिए डेटिंग कर रहा था,एक अकेली विधवा के छो टे से परिवार और कुछ संग्रहों के साथ । मात्र यही कहना उचित है और यह स्वीकार्य नहीं है ।

हो सकता है जीवन का अधिकांश समय एक एक व्यक्ति के साथ व्यतीत करना एक सुंदर और श्रेष्ठ अनुभव हो सकता है ।

लेकिन तथ्य रूप से ऐसे सार्थक प्रयास नहीं मिल पाते हैं । प्रत्यक्ष रूप से हम यही जानना चाहते हैं कि हम क्यूं और किसलिए ऐसे लोगों से मिल रहे हैं । क्या हम उन लोगों के साथ रहना चाहते हैं आजीवन उनका प्रेम पाना चाहते हैं ।

फिर भी हम उनकी परवाह नहीं करते ।जीवन और रिश्तों का सच्चा आंनद तो सामंजस्य ता , सहभागिता में है । ना पूर्ण रूप से पुरुष उत्तरदाई है और ना ही स्त्री ही ।

यह ऐसा द्वी चक्र है जिसमें एक के बिगड़ जाने पर एक स्वत:बिगड़ जाता है । दोनों के सार्थक तालमेल से ही जीवन रूपी नैया आगे बढ़ ती है अन्यथा कब डूब जाए कुछ पता नहीं है। रिश्ते टूट जाने के बाद भिन्न भिन्न परिस्थितियां मनुष्य के जीवन में आती हैं । विश्लेषण के आधार पर सूक्ष्म रूप में मात्र यही कारण स्पष्ट हो ता है कि जिसमें प्रश्न किया गया है लोग नए रिश्तों एवम् नए प्रेम की तरफ क्यूं नहीं जाना चाहते । या तो उनका विश्वास प्रेम संबंधों से उठ गया है , वे अकेले रहना अधिक पसंद करते हैं । उस अवस्था में भरोसा और अधिक अन्य कारणों से वे पुनः उसी मार्ग पर नहीं चलना चाहते हैं । वे मात्र हताशा और निराशा के बिदुओं के बारे में ही विचार करते हुए पाए जाते हैं।

दूसरी तरह के लोग किसी भी प्रकार की नकारात्मकता को अनदेखा करते हुए जीवन संबंधों को आगे बढ़ाने हेतु 

बस चलते ही जाते हैं ।

बहुत सारी विभिन्नताएं और कारण हैं जो कि एक व्यक्ति को नए रिश्ते बनाने और उन रिश्तों में ठहराव या बदलाव को लाते हैं । 

हर वस्तु की निश्चिंतता हमारी सोच पर निर्भर करती है और यह सकारात्मकता नकारात्मकता दोनों में से एक हो सकती है ।

 

अभिलाषा शर्मा ….✍️

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