प्रिय वृक्ष प्रिय वृक्ष तुम्हारी लता रुपी झरोखों से नित ही मैं सूरज की नृत्य करती रश्मियों को देखकर आह्लादित होता हूँ ये नृत्य करती रश्मियाँ जब मेरे मन मस्तिष्क का स्पर्श करती हैं तो मुझे एसा ा आभास होता है जैसे मेरी देह आशा का एक सुन्दर गेह बन गया हो …. और हे प्रिय वृक्ष …. तुम्हारी छाया में जब् प्रातः के समय किरणों की रौशनी पड़ने लग जाती है तो एसा लगता है मानो गहन ठन्डे अन्धकार में चमकीले नक्षत्र आकश गंगा का सुन्दर प्रवाह बन गया हो ………|| अभिलाषा {मेरी कलम मेरी अभिव्यक्ति } |