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विलुप्ति का समा बांधे ये मेरा मन है क्यूं भाजे मेरे मन की मेरे तन की मचलती आस तुम ही हो,,, मैं […]
संचित कर्मों का ऐसा ही पहाड़ बना हुआ है जिसमें शुभ अशुभ दोनो ही कर्म हैं जय सदगुरुदेव ईश् हमारे कर्म कितने […]
महाराज युधिष्ठिर का संकल्प था कि वे अपनी प्रजा को सदा दान देते रहेंगे। उनके पास अक्षय पात्र था जिस की विशेषता […]
हार एक पुरुष्कार जीतना अहम नहीं है जीत के पश्चात यदि अहम है तो जीत निश्चित ही नहीं है जीत उतनी आनंद […]