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प्रिय वृक्ष {आज की कविता } ABHILASHA BHARDWAJ

 

प्रिय वृक्ष 

प्रिय वृक्ष 
तुम्हारी लता रुपी झरोखों से नित ही मैं सूरज की 
नृत्य करती रश्मियों को देखकर आह्लादित होता हूँ 

ये  नृत्य करती रश्मियाँ जब मेरे मन मस्तिष्क का स्पर्श करती हैं 
तो मुझे एसा ा आभास होता है जैसे मेरी देह 
आशा का एक सुन्दर गेह बन गया हो ….

और हे प्रिय वृक्ष ….
तुम्हारी छाया में जब् प्रातः के समय किरणों की रौशनी पड़ने लग जाती है 
तो एसा लगता है मानो गहन ठन्डे अन्धकार में चमकीले नक्षत्र आकश गंगा का 
सुन्दर प्रवाह बन गया हो ………||

अभिलाषा {मेरी कलम मेरी अभिव्यक्ति }