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पूरब का ब्रह्माण्ड, पश्चिम का बिगबैंग और भूतों वाली फिल्म|

दुष्यंत कुमार ने लिखा – “एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो”। और हम पत्थर लिए पिल पड़े। आसमान में तो सुराख नहीं हुआ, लेकिन दो-चार सिर अवश्य फट गए। कथन का आशय यह है कि शब्दार्थ और भावार्थ के बीच जमीन-आसमान का अंतर होता है। यही प्राचीन ज्ञान को समझने की पहली कुंजी है।

जब प्राचीन ज्ञान की बात हो, तो यह जानना जरूरी है कि क्या आर्यभट्ट के इस भारत में सृष्टि और उसकी उत्पत्ति की कोई मौलिक अवधारणा पहले से मौजूद थी? बिगबैंग सिद्धांत, जिसे आज व्यापक मान्यता प्राप्त है, से पहले हमारे विचार और समझ कितनी विकसित थी?

सात दिनों में सृष्टि का निर्माण – बाइबल और कुरान का दृष्टिकोण
बाइबल “सेवन डे थ्योरी” प्रस्तुत करती है, जिसके अनुसार परमेश्वर ने सात दिनों में सृष्टि का निर्माण किया। आरंभिक छह दिनों में उन्होंने ब्रह्माण्ड, आकाश, भूमि, सूर्य, चंद्रमा, जलचर, वनस्पति, और मनुष्यों की रचना की। सातवें दिन उन्होंने विश्राम किया। कुरान भी इसी प्रकार सृष्टि के निर्माण की बात करता है: “अल्ल्ज़ी खलकस्समावाति वल्अर्ज़ व मा बैनहुमा फी सित्तति अय्यामिन्…”।

मध्यकालीन दृष्टिकोण और काव्यात्मक व्याख्या
मलिक मुहम्मद जायसी ने अपनी कृति “अखरावट” में सृष्टि की कहानी को कविता में प्रस्तुत किया:
“गगन हुता नहिं महि दुती, हुते चंद्र नहिं सूर।
ऐसइ अंधकूप महं स्पत मुहम्मद नूर।”

गुरु नानक के विचार भी प्राचीन उपनिषदों से मेल खाते हैं। उन्होंने कहा कि सृष्टि परमात्मा ने अपने आप रची, बिना किसी की सहायता के।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण और बिगबैंग सिद्धांत
आधुनिक विज्ञान में बिगबैंग सिद्धांत को सृष्टि की उत्पत्ति का सर्वमान्य सिद्धांत माना गया है। बेल्जियम के खगोलज्ञ जॉर्ज लैमैत्रे ने इसे 1960-70 के दशक में प्रस्तुत किया। उनके अनुसार, लगभग 15 अरब वर्ष पहले ब्रह्माण्ड एक परमाणु जितनी इकाई में सिमटा हुआ था। महाविस्फोट के साथ इसका विस्तार हुआ।

ऋग्वेद के श्लोकों को बिगबैंग थ्योरी के आलोक में देखा जाए, तो कुछ उल्लेख अत्यधिक प्रासंगिक प्रतीत होते हैं। उदाहरण के लिए:
“सृष्टि से पहले सत् नहीं था/ असत् भी नहीं/ अंतरिक्ष भी नहीं/ आकाश भी नहीं था।
छिपा था क्या, कहां/ किसने ढका था। उस पल तो अगम, अतल जल भी कहां था।”

प्राचीन भारतीय विज्ञान और आधुनिक दृष्टिकोण
भारतीय प्राचीन ग्रंथों में अनेक वैज्ञानिक अवधारणाएं मिलती हैं। सूर्य के गुरुत्वाकर्षण बल, पृथ्वी के घूर्णन, चंद्रमा की चमक, और ज्वार-भाटा के विज्ञान को हजारों साल पहले बताया गया।

पश्चिमी शिक्षा और पूर्वाग्रह
हमारे शिक्षा तंत्र ने पश्चिमी वैज्ञानिकों जैसे गैलीलियो, कॉपरनिकस, और अरस्तु को पढ़ाया, लेकिन वैदिक साहित्य को “मिथक” कहकर खारिज कर दिया। यह एक सोचा-समझा षडयंत्र प्रतीत होता है। हमें पश्चिम के ज्ञान को अपनाना चाहिए, लेकिन अपने प्राचीन ज्ञान को भी नहीं भूलना चाहिए।