पहला संसार की हर चीज़ मे अतृप्ति मिला दी, कि तुझे दुनिया मे कुछ भी मिल जाये तू तृप्त नहीं होगा।
दुःख ईश्वर का प्रसाद है।
जब भगवान(गुरुदेव) सृष्टि की रचना कर रहे तो उन्होंने जीव को कहा कि तुम्हे मृतुलोक जाना पड़ेगा,मैं सृष्टि की रचना करने जा रहा हूँ, ये सुन जीव की आँखों मे आंसू आ गए.वो बोला प्रभु कुछ तो ऐसा करो की मे लौटकर आपके पास ही आऊ. भगवान (गुरुदेव) को दया आ गई। उन्होंने दो बातों की जीव के लिए रचना की-
पहला संसार की हर चीज़ मे अतृप्ति मिला दी, कि तुझे दुनिया मे कुछ भी मिल जाये तू तृप्त नहीं होगा.
तृप्ति तुझे तभी मिलेगी जब तू मेरे पास आएगा
और दूसरा सभी के हिस्से मे थोडा-थोडा दुःख मिला दिया कि हम लौट कर ईश्वर के पास ही पहुचे…
इस तरह हर किसी के जीवन मे थोडा दुःख है. जीवन मे दुःख या विषाद हमें ईश्वर के पास ले जाने के लिए है,
लेकिन हम चूक जाते है. हमारी समस्या क्या है कि हर किसी को दुःख आता है, हम भागते है ज्योतिष के पास,अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के पास. कुछ होने वाला नहीं
थोड़ी देर का मानसिक संतोष बस. यदि दु:खो से घबराये नहीं और गुरुदेव (ईश्वर) का प्रसाद समझ कर आगे बढे तो बात बन जाती है..
यदि हम गुरुदेव (ईश्वर) से विलग होने के दिनों को याद कर ले तो बात बन जाती है और जीव दु:खो से भी पार हो जाता है.
दुःख तो गुरुदेव (ईश्वर) का प्रसाद है…दु:खो का मतलब है, गुरुदेव (ईश्वर) का बुलावा है, गुरुदेव (ईश्वर) हमें याद कर रहा है, पहले भी ये विषाद और दुःख बहुत से सत्संगी लोगो व संतो के लिए ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बन चुका है.
हमें ये बात अच्छे से समझनी चाहिए कि संसार मे हर चीज़ मे अतृप्ति है और दुःख और विषाद गुरुदेव (ईश्वर) प्राप्ति का साधन है..!!