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परिवर्तन ही सुधार

क्या हुआ अगर विराम लगा

ये तो जीवन पर एहसान हुआ

सब समय की बात है

ना हैरानी से देखो तुम

बढ़ गईं हैं कुछ सांसें

ये तो प्रभु का उपकार हुआ

ये नर बड़ा ही चंचल है

देखे हर ओर व्याकुल दृष्टि से

बन गई धरा जो लाश की ढेरी

यह इसकी ही कुदृष्टि है

ना सुधरेगा यह कभी भी

यह तो विधि का विधान है

बन जाना सबका एक ही रूप

कर्म तब ही कलि को आना है

ये कर्म भूमि ये धर्म भूमि है

ये देव भूमि देवां चल है

तर जाएंगे वही पुण्य जन

जो हरी नाम के साधक हैं

यह तो अवश्यंभावी था

परिवर्तन का दर्पण था

यह प्रकृति क्रांति का कारण था

फिर क्यों इसमें व्यर्थ आवरण था

समता बनेगा यह विपरीत समय

कुछ दीर्घ काली परिवर्तन का

एक विचार ही एक मत

एक भाव अनुसंधान होंगे

होंगे प्रयाण नरों के मन

एक ही राम रामायण में

एक ही श्री नारायण होंगे

रचनाकार :अभिलाषा