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रिश्ते टूटने के भयानक परिणाम…A Sharma..

परिणास्वरूप भयानक मानसिक बीमारी तनाव प्रताड़ना हिंसा आदि के शिकार हो जाते हैं |

रिश्ते टूटने के बाद लोग नए प्यार और नए रिश्ते को क्यों नहीं ढूंढ़ पाते हैं..?

आखि़र कमी कहां रही जा रही है ..

प्रेम इस सृष्टि का सबसे सुंदर और अनोखा शब्द है , प्रेम ही लय और प्रेम ही विलय । प्रेम सृष्टि का श्रृंगार है …प्रेम सृष्टि का आधार है
बिना प्रेम सब कुछ निराधार है । प्रेम प्रतीपल नवीन है । कंटक पूर्ण पथ पर चलना भी उद्देश्य के प्रति आत्मिक प्रेम है ..। प्रेम का कोई स्वरूप नहीं ,प्रेम अनंत है जिस भाव में जिस वस्तु विशेष से प्रेम होता है वह अव्यक्त ही रह पाता है ।
प्रेम  उस दीप की तरह है ,जब प्रज्वलित हो उठता है तो समस्त जीवन में प्रकाश की किरणें प्रसरित होती रहती हैं । प्रेम वह अनमोल उपहार है जो ईश्वर ने हम सबको किसी न किसी रूप में निश्चय ही प्रदान किया है । 
किसी भी या यूं कह लो हर एक पारिवारिक सामाजिक रिश्ते नाते एवम् बंधनों का एक मात्र आधार सूत्र प्रेम ही है , जो कि इस सृष्टि को अभिन्नता से बांधे हुए है 
आज के इस व्यस्तता भरे हुए युग में हर कोई अपना भिन्न भिन्न क्षेत्रों में वर्चस्व स्थापित करने में दौड़ में शामिल है ।भागदौड़ भरी जिंदगी में  हर कोई मात्र धन का अनुसरण करने में ही लगा हुआ है , फिर चाहे वह पुरुष हो या स्त्री ।
आज 21 वीं सदी में मनुष्य इतना वक्त का पाबंद है समय होते हुए भी  उसके पास स्वयं के लिए और अपनों के लिए समय नहीं है । और ना ही समय के साथ तालमेल बिठाने की उसको समझ ही है ।
ऐसे समय में यह कहना एक दम उचित ही होगा कि रिश्ते टूट रहे हैं ,और आज का युवा वर्ग उन रिश्तों को संभाल पाने और नवीन रिश्तों में बंध पाने में पूरी तरह अक्षम है ।
कमियों की अगर ध्यान दें तो वह समय के साथ बदलती मानसिकता का कुप्रभाव है , जिसके कारण घर परिवार समाज विलग हो रहे हैं ।
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विवाह के पूर्व की बात करें तो आज 100% में से 80% युवा पुरुष एवम् महिलाएं अपने प्रेम प्रसंगों में अयोग्य पाए जाते हैं , जिसके फलस्वरूप आगे के पारस्परिक सुंदर  जीवन की कल्पना ही नहीं करते सकते  । “रिश्ते माला के मोतियों के समान होते हैं अगर टूट कर बिखर जाएं तो इन्हें झुककर समेट लेना ही बेहतर है । वर्तमान युवा पीढ़ी अधिकतर प्रेम प्रसंगों में पड़कर अपने भविष्य को धुंधला कर रहे हैं । अल्प आयु में प्रेम में पड़ जाने पर से अल्प समय में ही वे धोखा , हिंसा ,और तिरस्कार के पात्र बन रहे हैं , जिसके कारण आत्महत्या दर काफ़ी सीमा तक बढ़ती जा रही है । आज हर किशोर अप्ल समय में ही प्रेम केंद्र में पाए जाते हैं जिसमें प्रवेश कर लेने के बाद उनका हर क्षण अपने प्रेमी को प्रसन्न करने के आयोजन में व्यतीत होता है । उनके मंहगे उत्पादों से आंनद देना , उपहार देना उनकी इच्छा के अनुरूप कार्य करना , मनोरम स्थानों पर उनको भ्रमण हेतु ले जाना आदि । दुर्भाग्यवश जब इन संसाधनों में अवरोध आता है तो हर जोड़े के संवाद और संबंधों में टकराव आने लग जाता है । और ये छोटे छोटे कारण ही एक विकट परिस्थिति को जन्म देते हैं । जिनके साथ वे अपना जीवयापन करना चाहते हैं । वे ही उनको मध्य में छोड़कर चले जाते हैं। परिणास्वरूप भयानक मानसिक बीमारी तनाव प्रताड़ना हिंसा आदि के शिकार हो जाते हैं । इस अवसाद का मूल कारण यही है वस्तु विशेष का ज्ञान और महत्व का पता ना होना ।  आकर्षण , अधिक जुनून अधिक वासना आज के वयस्कों की प्रथम समस्या है जिसके देखते हुए वे कभी कभी हिंसक आक्रामक बन जाते हैं । वर्तमान और भविष्य दोनों ही उनके धूमिल हो जाते हैं । विवेचना के आधार पर प्रेम में धोखा खाए हुए लोग इन्हीं विभिन्न कारणों के चलते पुनः उस रास्ते पर चलना नहीं चाहते और ना ही नए रास्ते खोजना चाहते हैं । अधिकतर ऐसे लोग अकेलेपन का भी शिकार देखे गए हैं। जब तक हम परिपक्व एवम् समझदार नहीं बनते तभी  तक हम कुछ असफल रिश्तों का सामना करते हैं । और वह वस्तु विशेष रिश्ता हमें खिन्न और सुन्न बना देती है । हमारी इच्छाएं और आशाएं भी कम हो जाती हैं । हमारी भावनात्मक कल्पनाएं उन लोगों के साथ हमारी शारीरिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए क्षीण सी हो जाती हैं  जिनकी हम अब वास्तव में चिंता नहीं प्रकट करते ।


यह जीवन जीने का एक अक्षम्य तरीका है जैसे कि यह संसार सप्त रंगों से संतप्त है किन्तु उनको केवल धूसर ही दिखेगा ।
हाल ही में एक निराशाजनक शब्द देखने में आया है सिट्यूएशन (परिस्थिति) यह एक डेटिंग संबंध शब्द है जो की अपरिभाषित या अप्रति बद्ध है । यह मूल रूप में तब होता है जब या अन्य कोई युगल व्यक्ति बातें कर रहे हैं किन्तु आप वास्तव में युगल नहीं है ।
परिस्थितियां वह क्षेत्र है जहां कोई भी वास्तव में नहीं जानता कि क्या हो रहा है और कोई भी अपने कार्य के प्रति जागरूक विश्वस्त और प्रतिबद्ध नहीं है । बड़े दुख की बात है कि बहुत से लोग इन संकर आपदाओं के लिए समझौता भी कर रहे हैं ।
किन्तु यदि विचार किया जाए तो हम बड़े हो गए हैं और हम को और भी अधिक मुखर होने की आवश्यकता है ।
रिश्तों को सही सूत्र में पिरोना सच में एक कला है । मैं ऐसे तलाकशुदा लोगों से मिला हूं जो यह कहते हैं कि उन्होंने अपना सब कुछ एक बार पहले दे दिया , जैसे कि वत्तिय सहायता , परिवार को पहले रखना , पत्नियों की मांगों को स्वीकार कर उन्हें पूरी करना ।


अधिकांश महिलाएं सोचती हैं कि उनके बच्चों को उन्होंने ही पाला है जबकि ऐसा बिल्कुल भी नहीं होता है । परिवार नियोजन , नियंत्रण और मूल्यांकन में दोनों की ही अहम भूमिका पाई जाती है ।


क्यूं  और किसलिए कुछ महिलाएं बच्चों की तरह काम करने वाले पुरुषों को अपने जीवन में लाना चाहती हैं ..? यह एक वांछनीय प्रश्न है ..!! 
हर व्यक्ति की सोच विचार अलग ही देखे जाते हैं , कुछ पुरुष अहंकार रूपी अवगुण के …..कारण अपने पारिवारिक जीवन से हाथ धो बैठते हैं ।कुछ महिलाएं अपना ही प्रभुत्व कायम करना चाहती हैं ।


एक व्यक्ति जो कि अपनी जरूरतों के लिए डेटिंग कर रहा था,एक अकेली विधवा के छो टे से परिवार और कुछ संग्रहों के साथ । मात्र यही कहना उचित है और यह स्वीकार्य नहीं है ।


हो सकता है जीवन का अधिकांश समय एक एक व्यक्ति के साथ व्यतीत करना एक सुंदर और श्रेष्ठ अनुभव हो सकता है ।
लेकिन तथ्य रूप से ऐसे सार्थक प्रयास नहीं मिल पाते हैं । प्रत्यक्ष रूप से हम यही जानना चाहते हैं कि हम क्यूं और किसलिए ऐसे लोगों से मिल रहे हैं । क्या हम उन लोगों के साथ रहना चाहते हैं आजीवन उनका प्रेम पाना चाहते हैं ।
फिर भी हम उनकी परवाह नहीं करते ।जीवन और रिश्तों का सच्चा आंनद तो सामंजस्य ता , सहभागिता में है । ना पूर्ण रूप से पुरुष उत्तरदाई है और ना ही स्त्री ही ।


यह ऐसा द्वी चक्र है जिसमें एक के बिगड़ जाने पर एक स्वत:बिगड़ जाता है । दोनों के सार्थक तालमेल से ही जीवन रूपी नैया आगे बढ़ ती है अन्यथा कब डूब जाए कुछ पता नहीं है। रिश्ते टूट जाने के बाद भिन्न भिन्न परिस्थितियां मनुष्य के जीवन में आती हैं । विश्लेषण के आधार पर सूक्ष्म रूप में मात्र यही कारण स्पष्ट हो ता है कि जिसमें प्रश्न किया गया है लोग नए रिश्तों एवम् नए प्रेम की तरफ क्यूं नहीं जाना चाहते । या तो उनका विश्वास प्रेम संबंधों से उठ गया है , वे अकेले रहना अधिक पसंद करते हैं । उस अवस्था में भरोसा और अधिक अन्य कारणों से वे पुनः उसी मार्ग पर नहीं चलना चाहते हैं । वे मात्र हताशा और निराशा के बिदुओं के बारे में ही विचार करते हुए पाए जाते हैं।
दूसरी तरह के लोग किसी भी प्रकार की नकारात्मकता को अनदेखा करते हुए जीवन संबंधों को आगे बढ़ाने हेतु 
बस चलते ही जाते हैं ।


बहुत सारी विभिन्नताएं और कारण हैं जो  कि एक व्यक्ति  को नए रिश्ते बनाने और उन रिश्तों में ठहराव या बदलाव को लाते हैं । 
हर वस्तु की निश्चिंतता हमारी सोच पर निर्भर करती है और यह सकारात्मकता नकारात्मकता दोनों में से एक हो सकती है ।

अभिलाषा शर्मा ….✍️ {मेरी कलम मेरी अभिव्यक्ति }

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