आज भारत ही नहीं सारे संसार की बड़ी भयावह स्थिति हो गई है । संसार एक ऐसे बिंदु के समीप पहुँच गया है, जहाँ पर किसी समय भी उसका ध्वंस हो सकता है । आज संसार को भयानक ध्वंस से बचाने के लिए वैयक्तिक तथा सामूहिक प्रार्थनाओं की परम आवश्यकता है ।
द्वापर काल में महाभारत युद्ध की भयानक भूमिका देखते हुए दूरदर्शी भगवान व्यास, राष्ट्र और विश्व कल्याण की भावना से विकल होकर दोनों भुजाएँ उठाकर पुकार करते रहे कि “ऐ मदांध लोगो ! “अर्थ” और “काम” से “धर्म” श्रेष्ठ है, “अर्थ” को इतनी महत्ता देकर अनर्थ मत करो, परमार्थ का आश्रय लो ।” किन्तु अर्थ और काम के गुलाम लोगों ने उनकी पुकार न सुनी, जिसके फलस्वरूप महाभारत का युद्ध हुआ ।
आज संसार पुनः उसी महाभारत की स्थित में पहुँच गया है। आज के आणविक अस्त्र उस समय के अस्त्र शस्त्रों से अधिक भयानक और विनाशक हैं । *साथ ही आज का संसार उस समय से कहीं अधिक लोलुप, स्वार्थी और अर्थलिप्सु बन गया है । आज भी न जाने कितने मनीषी महात्मा व्यास की भाँति विह्वलता से पुकार कर रहे हैं, किंतु आज का मनुष्य उसी प्रकार से बहरा हो गया है। न उसे कुछ दिखलाई देता है और न सुनाई । फिर भी सदैव की भाँति जहाँ एक ओर आसुरी संपदा के धनी लोग भौतिक साधनों द्वारा संसार के विनाश की तैयारी कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर संसार का कल्याण चाहने वाले दैवी संपदा के लोग आध्यात्मिक साधनों द्वारा परमात्मा से कल्याण की कामना करते हैं और इस देवासुर द्वंद्व में “अधर्म का नाश” के सिद्धांत पर अंततोगत्वा धर्म की ही विजय होगी ।
आज जिस प्रकार विनाशक तत्व संसार में व्याप्त हो गए हैं । ठीक उसी प्रकार उनका नाश करने के लिए व्यापक प्रयत्न की आवश्यकता है। धर्म प्रिय लोगों के पास ध्वंसक वृत्ति के व्यक्तियों की भाँति भौतिक साधनों का भंडार तो होता नहीं और न वे इसमें विश्वास करते हैं, अपितु उनके पास जो प्रभु स्मरण और उसकी प्रार्थना रूपी अपरिमित शक्ति है वह संसार की सारी शक्तियों की अपेक्षा कहीं अधिक बढ़कर है । यदि आज संसार के सब सदाशयी व्यक्ति एक-एक अथवा एक साथ प्रभु से प्रतिदिन प्रार्थना ही करने लगें, तो संसार के सारे अनिष्ट दूर हो जाएं और उनके स्थान पर सुख और शांति का स्रोत बहने लगे ।
यह निर्विवाद है कि यदि आज के धनधारी, सत्ताधारी, वैज्ञानिक, राजनीतिज्ञ आदि अपना काम करते हुए नित्य कुछ समय प्रभु की प्रार्थना का भी कार्यक्रम अपना लें, तो आज के यह सारे विनाश साधन स्वतः निर्माण साधनों में बदल जाएँ । उनके जीवन का प्रवाह अनायास ही स्वार्थ की ओर से परमार्थ की ओर बह चलेगा और तब वे स्वयं ही ध्वंसक उपादानों से घृणा करने लगेंगे और अपनी क्षमताओं को विश्व कल्याण की दिशा में मोड़ देंगे ।
अस्तु, उनमें यह परिवर्तन लाने के लिए अधिक से अधिक लोगों को प्रार्थनाएं करनी चाहिए । अपनी प्रार्थनाओं में लोगों को सद्बुद्धि मिलने का भी भाव रहना चाहिए।
꧁जय श्री राधे꧂
आईलाज ने अधिवक्ताओं के लिए सुरक्षा और सामाजिक सुरक्षा लाभ की आवश्यकता पर जोर दिया Read More
आरा / भोजपुर | बिहार राज्य बार काउंसिल के सदस्य सुदामा राय (77) का 23 दिसंबर 2024 को हृदय गति… Read More
राजद सुप्रीमो के आगमन पर हजारों कार्यकर्ताओं ने फूल-मालाओं से किया स्वागत Read More
आरा में विहंगम योग के माध्यम से आत्मा के ज्ञान और ध्यान साधना पर जोर | Read More
धरना व्यवसायियों के हितों की रक्षा और उनके अधिकारों की आवाज बुलंद करने की दिशा में एक अहम कदम साबित… Read More
सहारा भुगतान सम्मेलन की तैयारी में जुटे नेता, पटना में 5 जनवरी को होगा बड़ा आयोजन Read More