जीत की ललकार

जीत की ललकार से

चीर चलो तलवार से

हे साधु तुम बढ़े चलो

लेकर प्रलय तांडव प्रतिघात का

बढ़ा दो मान भगवा का

दिखा दो पराक्रम परशुराम का

करो ध्वस्त निष्ठुर दुष्ट मानव का

मिटा दो अहंकार की आज हस्तियां

झुक जाएंगी जिसमें प्रेम में बस्तियां

बन गए जो निर्दोष रक्त के प्यासे

वन में विचरण करते सम वनमानुष

क्या भिन्नता मनुज पशु में

जो दया करुणा ना समझ पाए

क्या यही तुष्टि की नीति है

जो व्यक्ति व्यक्ति को भरमाए

अब होगा न्याय हर एक रक्त की बूंद का

समय निकट है पापियों के कुकृत्य का

कूच करेगा भगवा रंग होकर के

के जब नंग धड़ंग दिशाएं भी डोल उठेंगी

जब होगी बम बम भोले के संग आएगी

मानवता संग संग

जब कूच करेंगे अंग अंग

जय महाकाल वन वन डोले

बाघाम्बर धारी शिव अलबेले

अभिलाषा शर्मा 💝

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Published by
Abhilasha Sharma

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