द्वापर युग में जब भगवान श्री हरि श्रीविष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया तो यह उनका मानव रूप था। सृष्टि के नियम मुताबिक हर मानव की तरह इस रूप की मृत्यु निश्चित थी। भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध के 36 साल बाद अपना देह त्याग दिया। जब पांडवों ने उनका अंतिम संस्कार किया तो श्रीकृष्ण का पूरा शरीर तो अग्नि में समा गया, लेकिन उनका हृदय धड़क ही रहा था। बह्म के हृदय को अग्नि जला नहीं पायी। इस दृश्य को देखने के बाद पांडव अंचभित रह गए। तब आकाशवाणी हुई कि यह ब्रह्म का हृदय है इसे समुद्र में प्रवाहित कर दें। इसके बाद पांडवों ने भगवान श्रीकृष्ण के हृदय को समुद्र में प्रवाहित कर दिया।
ओडिशा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर में भाई बलदाऊ और बहन सुभद्रा के साथ विराजमान भगवान कृष्ण से कई रहस्य जुड़े हैं। यह मंदिर बेहद चमत्कारिक हैं। इस मंदिर के सामने आकर हवा का रुख भी बदल जाता है। बताया जाता है कि हवाएं अपनी दिशा इसलिए बदल लेती हैं, ताकि हिलोरे लेते समुंदर की लहरों की आवाज मंदिर के अंदर न जा सके। प्रवेश द्वार से मंदिर में एक कदम अंदर रखते ही समुद्र की आवाज सुनाई देना बंद हो जाती है। मंदिर का ध्वज भी हमेशा हवा से उलटी दिशा में लहराता है।
भगवान श्रीकृष्ण का हृदय आज भी श्री जगन्नाथ मंदिर की मूर्ति में मौजूद है। भगवान के इस हृदय अंश को ब्रह्म पदार्थ कहते हैं। भगवान श्री जगन्नाथ की मूर्ति का निर्माण नीम की लकड़ी से किया जाता है और हर 12 साल में जब भगवान जगन्नाथजी की मूर्ति बदली जाती है, तो इस ब्रह्म पदार्थ को पुरानी मूर्ति से निकालकर नई मूर्ति में रखा जाता है। जब इस रस्म को किया जाता है, तो उस समय पूरे शहर की बिजली को काट दिया जाता है। इसके बाद मूर्ति बदलने वाले पुजारी भगवान के कलेवर को बदलते हैं। कहा जाता है कि इस मूर्ति के नीचे आज भी भगवान श्रीकृष्ण का हृदय धड़कता है।
भगवान कृष्ण का हृदय बदलते समय बिजली काटने के साथ ही पुजारी के आंखों पर पट्टी बांध दी जाती है और हाथ में दस्ताने पहना दिए जाते हैं। इसके पीछे यह मान्यता है कि अगर किसी ने गलती से भी उसे देख लिया तो उसकी मृत्यु हो जाएगी। इसलीए रस्म निभाने से पहले पूरी सतर्कता बरती जाती है। मूर्ति बदलने वाले पुजारी कहते हैं कि जब भी यह प्रक्रिया की जाती है, तो उस समय ऐसा एहसास होता जैसे कलेवर के अंदर खरगोश फुदक रहा हो।
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