एक दिन एक वृद्ध व्यक्ति, जो अपने अंतिम क्षणों की ओर बढ़ रहा था, ने अपने बच्चों को पास बुलाया। उसकी आंखों में अनुभव का सागर और शब्दों में जीवन का अमृत था। उसने अपने बच्चों से कहा,
“बच्चों, मैं तुम्हें चार अनमोल रत्न दे रहा हूं। अगर तुम इन्हें अपने जीवन में उतारोगे, तो तुम्हारा जीवन सुखी, शांत और महान बन जाएगा।”
वह रुका, मुस्कुराया, और अपनी ज्ञान की पोटली से पहला रत्न निकालकर कहने लगा:
1. माफी का रत्न
“यदि कोई तुम्हें कुछ गलत कहे या करे, तो उसे दिल में मत रखना। माफी देने की ताकत में ही सच्ची शांति छिपी है। नफरत और प्रतिशोध का बोझ तुम्हें कभी खुश नहीं रहने देगा। माफ करो और हल्के हो जाओ, क्योंकि यही तुम्हारी आत्मा को उड़ने देगा।”
2. भूलने का रत्न
“जब तुम किसी पर उपकार करो, तो उसे भूल जाओ। कभी भी अपने उपकार का बदला पाने की अपेक्षा मत रखो। सेवा का असली आनंद तब है, जब वह निस्वार्थ हो। यदि तुम इसे अपना लोगे, तो जीवन में कभी निराशा तुम्हारे पास नहीं फटकेगी।”
3. विश्वास का रत्न
“हर परिस्थिति में खुद पर और उस परमपिता पर भरोसा रखो। ईश्वर का विधान हमेशा तुम्हारे लिए सही समय पर सही राह बनाएगा। मेहनत करते रहो और ईश्वर पर अटूट विश्वास रखो। यह विश्वास ही तुम्हारे जीवन की हर कठिनाई को आसान बना देगा।”
4. वैराग्य का रत्न
“याद रखो, यह जीवन क्षणभंगुर है। जब जन्म लिया है, तो मृत्यु निश्चित है। इसलिए लोभ, मोह और माया के जाल में न फंसो। इनसे मुक्त होकर जियो, तो तुम्हारे जीवन का हर क्षण दिव्य आनंद से भरा होगा।”
वृद्ध की बातों में गहराई थी। उसकी बातें सुनकर बच्चों की आंखों में आंसू आ गए, लेकिन उनके दिल में एक नई रोशनी जगमगा उठी।
“इन रत्नों को अपने जीवन में सजाकर रखोगे,” वृद्ध ने कहा, “तो हर कदम पर खुशियां तुम्हारे साथ होंगी।”
तो, चलो इन चार रत्नों को अपनाएं और जीवन को सार्थक बनाएं।