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जितना अहंकार को त्याग कर आप प्रकृति के समीप जाएंगे , वह उतना ही आपको स्नेह करेगी यह एक दम सत्य और […]
आओ चलो नदी की सैर पर चलते हैं पानी में हम भी अपनी तस्वीर देखते हैं आसमा तो हमारा है ही जल […]
वृक्ष ही जीवन है अब यह सत्य बात लोगों के लिए मात्र निज स्वार्थ सिद्धि के लिए प्रयोग में लाई जा रही है। वृक्षों की व्यथा कौन सुने सब आडम्बर की अटारी पर चढ़ कर बैठे हुए हैं। विकास तो सबको सूझ रहा है परंतु आंतरिक दुःख से हर कोई अनभिज्ञ है ।
१२ नवंबर २०२४ मंगलवार- ‼️
-कार्तिक शुक्लपक्ष एकादशी २०८१