काम क्रोध मद लोभ की , जब लग मन में खान । तब लग पंडित मूर्ख। ही, कबिरा एक समान ।। साहेब , नित्य अनादि सद्गुरू देव कहते है की जब तक मन में काम क्रोध मद तथा लोभ की खानी है अथार्त वे मन से उपजते है तब तक पंडित तथा मूर्ख दोनो एक ही समान है क्यों की विद्धवान में काम क्रोध लोभ आदि विकार नहि होना चाहिए । यदि होता है तो विद्धवान नहि है बल्कि मूर्ख है यह नित्य अनादि सद्गुरू का उपदेश है इसलिए हम सभी साधकगणो को अंतःकरण के समस्त विकारों से मुक्त होने के लिए सद्गुरू आदेशानुसार निष्काम भाव से सेवा सत्संग ओर साधना में कठोर पुरुषार्थ करना चाहिए।
ताकि इन समस्त विकारों से छुटकारा प्राप्त हो क्यों की जब तक अंतःकारण सुद्ध नहि होगा तब तक मन , प्राण और सुरती तिनो स्थिर नहि होंगे , साधक का मन डावाँडोल , चंचल रहेगा और मन की चंचलता में सुरती भी भटकती रहेगी साधना में लगाया गया समय व्यर्थ ही चला जायेगा इसलिय यम, नियम, आहार और व्यवहार पर ध्यान देना होगा ।
कामी क्रोधी लालचीं , भक्ति रतन नहि पाय । वे त्रिद्वन्द संतन तजै, भक्ति परम। सुख पाय ।।
इसलिए सद्गुरू देव कहते है की कामी , क्रोधी और लालची उन्हें भक्ति – रूपी रतन नहीं प्राप्त होता अथार्त वे साधन योगाभ्यास के अधिकारी नहीं होते । संतजन इन त्रिद्वन्दो को छोड़कर भक्ति के परमसुख को प्राप्त करते है इसलिए हमें ज़रूरी है स्वर्वेद के सिद्धांत को जीवन में उतारना ही पड़ेगा , तभी साधना के पथ पर आगे बड़ पायेंगे साधक को नित्य अपना आत्म निरक्षण करना चाहिए तभी सभी विकारों से धीरे धीरे छुटकारा पा सकते है ।
भक्ति ज्ञान वैराग्य जो , तिनो पूरण होय । तब प्रभु की उपलब्धि है , आश्रित सद्गुरू सोय ।।
इसलिए स्वर्वेद का सिद्धांत है की सदगुरु शरण में ज्ञान , वैराग्य एवं भक्ति इन तिनो के पूरण होने पर महाप्रभु की भक्ति होती है । हम सभी साधक- जनो को राग से ऊपर उठ कर जीवन में ज्ञानयुक्त वैराग्य को धारण करने की चेष्टा करनी चाहिए और समय को सांसारिक आशा , वासना तथा तृष्णा में न लगाकर साधनाभ्यस में लगाना उचित ओर सार्थक होगा ।
भजन करो एक तार में, तार टूट नहि जाय । नष्ट समय जनि कीजिए , फिर अवसर कहँ पाय ।।
एक तार निरंतर भजन योगाभ्यास करे, भजन का तार टूटने नहि पाय । इस अमूल्य समय को नष्ट मत कीजिय । अब एसा अवसर कहाँ मिलने वाला है ।
अमृत वेला , उषाकाल का समय आरम्भ हो गया है साधनभ्यास का समय है अपनी निंद्रा से जाग कर ध्यान साधना में बैठिय और सद्गुरू देव के श्रीचरणो में आर्त- दिन अधीन होकर प्रार्थना कीजिए की हे सद्गुरू देव मुझे अपने श्रीचरणो की भक्ति दाँ दीजिए और नित्य सेवा में रखिय , आपके प्रति कभी मेरे मन में भ्रम संशय नहि हो , हम सब अचल जलमिनवत भक्ति की प्रार्थना करे ।।
जय सद्गुरू देव
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