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उल्लास का महापर्व

पहन कर दिशाओं के वस्त्र तु लेकर समय का हाथ में शस्त्र तु,बन जा रणभेरी, ना हो हृदय से हताश तु । तेरी अंतिम यात्रा, बन जाए तेरी अंतिम तलाश तु।तु बनकर भिक्षुक चला मार्ग मार्ग, बन गया अभेद्य,अभिन्न,बिंदु तु। पारस तेरे हाथों में , मिट्टी को कर गया सुवर्ण तु।बन कर सुमेरू सम, निश्छल खड़ा अडिग तु ना कर सके तेरा सामना , उगते सूर्य का तेज है तु।तेरी शिखर चोटी छूतिं नभ को ऐसे उल्लास का महापर्व है तु।हे वीत रागी ! कर महाप्रयाण , प्रकृति का उन्माद है तु ।तेरे नेत्रों में अग्नि ज्वाला, प्रचण्ड प्रलय का प्रारंभ है तु।हृदय में डूबा विश्व पटल, सागर सम गभीर असीम है तु।तेरे नेत्रों में देखा जाए, ऐसा विश्व प्रकाश है तु ।जग को बिंदु दे जाए , ऐसा जीवन ज्ञान है तु ।तु वनचारी योगी तु नियोगी, हे महायोगी शिवयोग है तु। ©अभिलाषा शर्मा 🌷