आज जब मैं उदास था ,

ना खोने को कुछ पास था

दिन गुज़रा था बस इसी कशमकश में

क्या था मेरे पास जब मैं खुश गवार था ?

बैठ कर समंदर के किनारे पर

तकता रहा जाती हुई शाम को

लहरें भी थम थम कर ठिठक रहीं थीं

मानो कसक हो यूं बार बार खुद को मिटाने पर ।

दर्द तो मैंने एक लहर में देखा क्या देखा

लहरें ना हो तो समंदर क्या है?

लहरें ना हो तो किनारा भी क्या है ?

बहना, रुकना फिर बहना मिट जाना

फिर भी बहते जाना ये तो लहरों से ही सीखा है। रचनाकार :अभिलाषा शर्मा 🌷