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उठा लो मन को पर्वत सा

जब लक्ष्य दिशाहीन हो ,

मन आशाहीन हो

दीर्घ श्वास भरो तन में,

ना हताश हो आत्मा में ,

उठा लो मन को पर्वत सा

ले ज्वाला विश्वास की ,

गिर गए तो मन की हार नहीं

इस जीवन की हार नहीं ।

उठ चले फिर कदम तेरे,

मन दीप जला विश्वास के डेरे

मन बन गया गगन चुंबी,

जीत विस्तृत अरु राह है लंबी

दिशाओं ने पंख फैलाए

उड़ चल मन को विहग बनाए

ना गर्वित हो निज अहम से तु

हो जा संकल्प से पार तु

राह में आते हर कण को तु

अपना सहपाठी सन मित्र बना

तु बन जाएगा विश्व हृदय विजेता

जब आत्म निरीक्षक होगा तू ।

रचनाकार :अभिलाषा शर्मा 🌷