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आपकी असफलता के लिए / दूसरे ही दोषी क्यों हैं ?

संजीवनी ज्ञानामृत| अपनी हर एक बाह्य परिस्थिति की जिम्मेदारी दूसरों पर मत डालिए, वरन् अपने ऊपर लीजिए। 
दुनिया को दर्पण के समान समझिए जिसमें अपनी ही सूरत दिखाई पड़ती है। दूसरे लोगों में अच्छाइयाँ- बुराइयाँ दिखाई पड़ती हैं, सामने जो प्रिय-अप्रिय परिस्थितियाँ आती हैं, इसका कारण कोई और नहीं, वरन् आप स्वयं हैं और उनमें परिवर्तन करने की शक्ति भी किसी और में नहीं, वरन् आप में है। मनोविज्ञान शास्त्र बताता है कि मनुष्य में यह एक बड़ी भारी त्रुटि है कि वह अपनी भूल या न्यूनता को स्वीकार नहीं करता। अपने ऊपर उत्तरदायित्व लेने को तैयार नहीं होता। अपने दोषों को दूसरों के ऊपर थोपने का प्रयास करके वह स्वयं निर्दोष बनता है।
हम मानते हैं कि दूसरों में भी दोष हैं, अनायास अप्रिय परिस्थितियाँ भी सामने आती हैं, पर काँटों से आसानी के साथ बच निकलने योग्य विवेक की आँखें भी तो मौजूद हैं। अच्छाइयों के साथ बुराइयों से बच निकलना बुद्धिमत्ता का काम है। ऐसी बुद्धिमत्ता तब आती है जब आत्मनिर्भरता के दृष्टिकोण को अपना लिया जाता है। आप किसी गुत्थी को सुलझाने के लिए दूसरों की सहायता ले सकते हैं, पर उनके ऊपर अवलंबित मत रहिए। आप अपनी कठिनाइयों को सुलझाने का प्रयत्न करिए। जब तक आप दूसरों पर आश्रित रहते हैं, यह समझते हैं कि हमारे कष्टों को कोई और दूर करेगा, तब तक बहुत बड़े भ्रम में हैं। सारी समस्याओं को सुलझाने की कुंजी अपने अंदर है। दूसरे लोगों से जिस बात की आशा करते हैं, उसकी योग्यता अपने अंदर पैदा कीजिए, तो अनायास बिना माँगे ही वह इच्छाएँ पूरी होने लगेंगी।
आप चाहते हैं कि आपको बीमारी न सताए, तो स्वास्थ्य नियमों पर दृढ़तापूर्वक चलना आरंभ कर दीजिए। आप चाहते हैं  कि लोग आपका लोहा मानें, तो शक्ति संपादन कीजिए। आप चाहते हैं कि प्रतिष्ठा प्राप्त हो तो प्रतिष्ठा के योग्य कार्य कीजिए। आप चाहते हैं कि ऊँचा पद हो, तो उसके लिए योग्य गुणों को एकत्रित करिए। धन, बुद्धि, बल, विद्या चाहते हैं तो परिश्रम और उत्साह उत्पन्न करिए। जब तक अपने भीतर वे गुण नहीं हैं, जिनके द्वारा मन की इच्छाएँ पूरी हुआ करती हैं, तब तक यह आशा रखना व्यर्थ है कि आप सफल मनोरथ पा जाएँगे।
संसार में सफलता प्राप्त करने की आकांक्षा के साथ अपनी योग्यताओं में वृद्धि करना भी आरंभ कीजिए । अपने भाग्य को जैसा चाहें वैसा लिखना अपने हाथ की बात है।