आनंद सहज और सुलभ है।

आनंद की दौड़ भले ही धीमी हो पर वह एक ऐसी व्यवस्था है जो अंतर को उजाले से भर देती है।सुख की अग्नि जीवन को राख बना देती है परंतु आनंद का प्रकाश अनंत काल तक आपके साथ रहता है । दुख में एक तरह की तपन होती है जो देह के साथ ही मन को जलाती है ऐसे दुःख की तपन को दूर करने के लिए आनंद रूपी शीतल छांव की आवश्यकता होती है।इस आनंद का श्रोत क्या है इसकी व्यवस्था क्या है..? यह तो हम सभी भली भांति जानते हैं परंतु फिर भी सारा जीवन अंधे और बहरे बने रहते हैं। इस व्यवस्था परम सत्य श्रोत ईश्वर स्वरूप का भजन , चिंतन , और मनन है । हरी नाम संकीर्तन से आनंद के पट खुल जाते हैं। ऐसे दिव्य श्रवण से आत्मा दिव्य लोक में रमण करती है। संसार में आना सार्थक हो जाता है।कर्म करते हुए हरी नाम संकीर्तन से आनंद ही उत्पत्ति होती है। निरंतर अभ्यास से हर वस्तु प्राप्य है ऐसा वेदों व शास्त्रों में वर्णित है । सुख के लिए हम प्रयत्न करते हैं उसमें भी प्रश्नों से जूझते हैं भाव और अभाव के । सुख एक सोचा व समझा गया क्षणिक प्रयोजन है जिसमें हार ही हार है विजय है भी तो दूरगामी और सदा रहने वाला नहीं है एक एक दिन वह क्षय हो ही जाएगा । परंतु आनंद तो अपने आप में स्वयं उत्पन्न हुआ वह श्रोत है जो सहज है सार्थक है सुलभ है । जो कभी क्षय नहीं होता जो निरंतर बढ़ता है । संक्षिप्त में परमात्मा ही वह आनंद है जो सर्वत्र है , सर्वथा , सहज , सार्थक , सुलभ है।

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Published by
Abhilasha Sharma

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