संजीवनी ज्ञानामृत| “आत्मा” अनंत शक्तियों का भंडार होती हैं। संसार की ऐसी कोई भी शक्ति और सामर्थ्य नहीं, जो इस भंडार में न होती हो। हो भी क्यों न, आत्मा परमात्मा का अंश जो होती है। सारी शक्तियाँ, सारी सामर्थ्य और सारे गुण उस एक परमात्मा में ही होते हैं और उसी से प्रवाहित होकर संसार में आते हैं। अस्तु, अंश आत्मा में अपने अंशी की विशेषताएँ होनी स्वाभाविक हैं। आत्मा में विश्वास करना, परमात्मा में विश्वास करना है। जिसने आत्मा के माध्यम से परमात्मा में विश्वास कर लिया, उसका सहारा ले लिया, उसे फिर किस बात की कमी रह सकती है। ऐसे व्यक्ति के सम्मुख शक्तियाँ, दासियों के समान उपस्थित रहकर अपने उपयोग की प्रतीक्षा किया करती हैं।
जीवन के सभी क्षेत्रों में सफल होने के लिए “आत्मविश्वास” की आवश्यकता होती है। अच्छे-से-अच्छा तैराक भी आत्मविश्वास के अभाव में किसी नदी को पार नहीं कर सकता। वह बीच में ही फँस जाएगा, नदी के प्रवाह में बह जाएगा अथवा हाथ-पैर पटक कर वापस लौट आएगा। जीवन में भी अनेक कठिनाइयाँ, उलझनें, अप्रिय परिस्थितियाँ आती रहती हैं। इन झंझावातों में कठोर चट्टान की तरह अपनी राह पर अडिग रहने के लिए “आत्मविश्वास” की आवश्यकता होती है।
लक्ष्य जितना बड़ा होगा, मार्ग भी उतना ही लंबा होगा और अवरोध भी उतने ही अधिक आएँगे, इसलिए उतने ही प्रबल “आत्मविश्वास” की आवश्यकता होगी। संसार भी आत्मविश्वासी का समर्थन करता है। “आत्मविश्वास” चेहरे पर वह आकर्षण बनकर फूट पड़ता है, जिससे पराए भी अपने बन जाते हैं, अनजान भी हमराही की तरह साथ देते हैं। विपरीत परिस्थितियाँ भी आत्मविश्वासी के लिए अनुकूल परिणाम प्रदान करती हैं। संसार में कोई मनुष्य तब तक सफलता प्राप्त नहीं कर सकता, जब तक कि उसके मन में यह दृढ़-विश्वास न हो कि मैं जिस काम को करना चाहता हूँ, उस में अवश्य सफल बनूँगा।
जितना हम अपनी योग्यता और कार्यक्षमता पर विश्वास करेंगे, उतना ही हमारा जीवन सफल होगा और जितना हम अपनी योग्यता पर अविश्वास करेंगे, उतने हम विजय से, सफलता से दूर रहेंगे। चाहे हमारा पथ कितना ही कष्टपूर्ण, संकटपूर्ण एवं अंधकारमय क्यों न हो, हमें चाहिए कि हम कभी अपने “आत्मविश्वास” को तिलांजलि न दें। हमारे कार्य की नींव हमारे आत्मविश्वास पर जमी हुई है। “हम अमुक कार्य अवश्य कर सकते हैं।” इस विचार में बड़ी अद्भुत शक्ति भरी हुई है। संसार में जो मनुष्य बड़े-बड़े काम करते हैं, उन सब में ऊँचे दरजे का “आत्मविश्वास” होता है, अपनी शक्ति पर, अपनी योग्यता पर, अपने कार्य पर ।