संजीवनी ज्ञानामृत।
जब संसार में सभी साथी मनुष्य का साथ छोड़ दें, पराजय और पीड़ाओं के दंश मनुष्य को घायल कर दें, पैरों के नीचे से सभी आधार खिसक जायें, जीवन के अंधकारयुक्त बीहड़ पथ पर यात्री अकेला पड़ जाए तो भी क्या वह जीवित रह सकता है ? कुछ कर सकता है ? पथ पर आगे बढ़ सकता है ? अवश्य मेव।
यदि वह स्वयं अपने साथ है तो कोई शक्ति उसकी गति को नहीं रोक सकती । कोई भी अभाव उसकी जीवन यात्रा को अपूर्ण नहीं रख सकता । मनुष्य का अपना “आत्मविश्वास” ही अकेला इतना शक्तिशाली साधन है जो उसे मंजिल पर पहुँचा सकता है । विजय की सिद्धि प्राप्त करा सकता है ।
रवींद्र नाथ टैगोर का “अकेला चल” शीर्षक वाला गीत आपने पढ़ा या सुना होगा । उस गीत के भाव हैं–
यदि कोई तुमसे कुछ न कहे, तुझे भाग्यहीन समझ कर सब तुझसे मुँह फेर लें और तुझसे डरें, तो भी तू अपने खुले हृदय से अपना मुँह खोलकर अपनी बात कहता चल ।
अगर तुझसे सब विमुख हो जाएँ, यदि गहन पथ प्रस्थान के समय कोई तेरी ओर फिर कर भी न देखें, तब पथ के काँटों को अपने लहू-लुहान पैरों से कुचलता हुआ अकेला चल । यदि प्रकाश न हो, झंझावात और मूसलाधार वर्षा की अंधेरी रात में अपने घर के दरवाजे भी तेरे लिए लोगों ने बंद कर दिए हों, तब उस वजानल से अपने वक्ष के पिंजर को जलाकर उस प्रकाश में अकेला ही चलता रह ।
निसंदेह हर परिस्थिति में मनुष्य का एकमात्र साथी उसका अपना आपा ही है । “आत्मविश्वास” सरीखा दूसरा मित्र नहीं, आत्मविश्वास ही भावी उन्नति की प्रथम सीढ़ी है । सचमुच आत्मविश्वास के कारण दुर्गम पथ भी सुगम बन जाता है, बाधाएँ भी मंजिल पर पहुँचाने वाली सीढ़ियाँ बन जाती हैं । “आत्मविश्वास” सफलता का मुख्य रहस्य है ।
“आत्मविश्वास” मनुष्य को तुच्छता से महानता की ओर अग्रसर करता है । सामान्य से असामान्य बना देता है । “आत्मविश्वास” की मात्रा हममें जितनी अधिक होगी उतना ही हमारा संबंध अनंत जीवन और अनंत शक्ति के साथ गहरा होता जाएगा । जब चारों ओर विपत्तियों के काले बादल मंडराते हों, जब सागर में कहीं भी जीवन नैया को खड़ा करने का किनारा न मिल रहा हो, भयंकर तूफान उठ रहा हो, नाव अब डूबे तब डूबे की स्थिति में हो तो कैसे उद्धार हो सकता है ? “आत्मविश्वास” ही ऐसी स्थिति में मनुष्य को बचा सकता है । “आत्मविश्वास” में वह शक्ति है, जो सहस्त्रों विपत्तियों का सामना कर उन पर विजय प्राप्त कर सकती है ।