आज की प्रेरणा (समता)

धूप से निकल कर मनुष्य छांव की तरफ़ जाता है

दुःख से हटकर सुख की ओर जाता है

प्रश्नों से जूझकर समाधान की तरफ़ जाता है

किंतु फिर भी आता जाता उसी चक्र में है

यह सृष्टि एक ग्रंथि (माला) की तरह है जो बार बार उसी केंद्र पर आती है

उसकी परिधि में हम सब भी हैं आखिर जाएंगे किधर दौड़कर …?लौटकर तो फिर उसी परिधि में आना है । इसलिए सम रहना ही उचित है। भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है “समत्व्म योग उच्यते”।। सम रहना ही योग का प्रथम आधार है।

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Published by
Abhilasha Sharma

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