अक्षर के कंम्पन से परमाणु में गति होती हे जीसमे सत रज तम गुण कि चोट लगती रहती हे जीसे त्रिधाट कहते हे जीसे कारण भी कहते हे कारण बना तो कायँ होगा तब-तक ठीक है |
लेकिन कायँ व्यवहार रुप में वापस कारण बना तो स्ववेँद कि वाणी कहती हे इसका नाश निश्चित हे लेकिन सदगुरु भगवान ने इन कारण प्रकुति से सुरक्षीत होने के लीये कुछ आदेश नियम अनुशासन बनाये हे जो जीव इसका पालन करेगा वह कायँ व्यवहार रुप से वापस कारण नहीं बनकर सेवा सत्संग साधना में जीवनयापन कर सकता हे ये कारण से सुरक्षीत रहेगा कयुकि मन ओर प्रकुति के संबंध का कारण हि अज्ञान हे सुष्टी संसार परमाणु से हि बना हे कही पर सत हे कही पर रजस हे कही पर तमस हे लेकिन सदगुरु सेवा सत्संग साधना से इन त्रिगुणात्मक प्रकुति से उपर उथकर जीवन यापन कर सकते हे प्रकुति स्वतह आत्मा के अनुकुल रहकर कार्य करती रहती हे कारण ओर सुक्ष्म शरीर शांत स्थीर रहता हे ये चेतन विज्ञान स्ववेँद के संध से प्राप्त किया जा सकता हे इस लीये स्ववेँद का पथन अध्ययन प्रतिदिन सबको करना चाहिए
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