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बसंत पंचमी |
हे ! ऋतुराज प्रेमराज बसंत आपको वंदन
हे ! प्रकृति नंदन स्वीकार करो मेरा अभिनन्दन ।।
आ गया बसंत नई बहार लेकर
शुभ बेला नव जीवन विहान लेकर।।
मातृ सरस्वती सुर वाणी
मन – तमस मिटाकर
हृदय में ज्ञान का दीप जला दे।।
पीत वसन मुख ,चंद्रिका विराजे।
पीत कमल आसन, कर वीणा राजे।।
हे! हंस वाहिनी विमल कर मम उर कुंजन।
करें दीप भावपुष्पांजलि तुमको अर्पण ।।
खेतों में पीली सरसों फूली।
मुस्काती हुई दिशाएं झूली ।।
प्रकृति ओढ़े पीली ओढ़नी ।
वसुधा ने किया नव श्रृंगार ।।
नभ कर रहा तुझको वंदन ।
देव कर रहे तेरा गुणगान ।।
हर्षित है हर जीव धरा पर ।
प्रमुदित तन मन पुलकित तरुवर।।
वृक्ष ,नदी , खग मृग सिंह, परिवर ।
सब हैं साथ करें प्रेम व्यवहार ।।
तजैं वैर भाव करै सब प्रीति ।
अनुशासन मुद मंगल नीति ।।
पंछी कलरव गान करें।
भ्रमर भ्रमर पुष्प मधु पान करें।।
आ गई बसंत की बात सुहानी ।
होली के रंगों की बौछार मस्तानी
मेरी कलम मेरी अभिव्यक्ति {रचना ,अभिलाषा भरद्वाज }