मनुष्य के पास ईश्वर प्रदत्त पूँजी है – “समय” “समय” संसार की सबसे मूल्यवान संपदा है। यह वह मूल्यवान संपत्ति है, जिसके मूल्य पर संसार की कोई भी सफलता प्राप्त की जा सकती है। समय का सदुपयोग करने वाले व्यक्ति कभी भी असफल नहीं हो सकते। कहते हैं कि परिश्रम से ही सफलता मिलती है, किंतु परिश्रम का अर्थ भी समय का सदुपयोग ही है।मनुष्य कितना ही परिश्रमी क्यों न हो, अपने परिश्रम के साथ “समय” का सामंजस्य नहीं करेगा तो निश्चय ही उसका श्रम या तो निष्फल चला जाएगा अथवा अपेक्षित फल न दिला सकेगा। किसान परिश्रमी है, किंतु यदि वह अपने श्रम को समय पर काम में नहीं लाता तो वह अपने परिश्रम का पूरा लाभ नहीं उठा सकता। असमय बोया हुआ बीज बेकार चला जाता है। असमय जोता खेत अपनी उर्वरता प्रकट नहीं कर पाता। असमय काटी फसल नष्ट हो जाती है। निश्चित समय पर न किया हुआ कितना भी परिश्रम काम में सफलता नहीं देता।
प्रकृति का प्रत्येक कार्य एक निश्चित समय पर नियमित होता है। समय पर ग्रीष्म, समय पर वर्षा, समय पर सरदी और समय पर ही वसंत आकर वनस्पतियों को फूलों से सजा देता है। प्रकृति के इस क्रम में जरा-सा भी व्यवधान पड़ जाने से न जाने कितनी परेशानियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। “समय-पालन” ईश्वरीय नियमों में सबसे महत्त्वपूर्ण एवं प्रमुख नियम है ।मनुष्य का “समय”, मनोयोग एवं परिश्रमपूर्वक किसी दिशा में भी लग जाए, उसी में चमत्कार उत्पन्न हो जाएगा। संसार के महापुरुषों की प्रधान विशेषता यही रही है कि उन्होंने अपने जीवन का एक-एक क्षण निरंतर काम में लगाए रखा है। वह भी पूरी दिलचस्पी और श्रमशीलता के साथ। यह रीति-नीति जो आदमी अपना ले और अपने जीवन-क्रम की दिशा निर्धारित कर ले, वह हर क्षेत्र में सफलता की ऊँची मंजिल पर सहज ही पहुँच सकता है। मनुष्य की सामर्थ्य का अंत नहीं, पर कठिनाई इतनी ही है कि वह चारों तरफ बिखरी और अस्त-व्यस्त पड़ी रहती है। उसका एकीकरण, केंद्रीकरण जो व्यक्ति कर लेगा, अपनी प्रचुर शक्ति का परिचय सहज ही दे सकेगा।
योजनाबद्ध कार्य-निर्धारण करने और उसका तत्परतापूर्वक निर्वाह करने से ही विज्ञजन अनेकानेक सफलताएँ अर्जित करते हैं। “समय” ईश्वर-प्रदत्त संपदा है, उसे श्रम में मनोयोगपूर्वक नियोजित करके विभिन्न प्रकार की संपदाएँ, विभूतियाँ अर्जित की जा सकती हैं। जो समय गँवाता है, उसे जीवन गँवाने वाला कहा जाता है। कौन कितने दिन जिया, इसका लेखा-जोखा जन्मदिन से लेकर मरणपर्यंत के दिन गिनकर नहीं, वरन इस आधार पर लगाया जाना चाहिए कि किसने अपने समय का उपयोग महत्त्वपूर्ण प्रयोजनों के लिए किया। “समय” के सच्चे पुजारी एक क्षण भी नष्ट नहीं होने देते, अपने एक- एक क्षण को हीरे-मोतियों से तोलने लायक बनाकर उसका सदुपयोग करते हैं और सफल और श्रेयाधिकारी महामानव बनते हैं ।
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