DNTV India News Hindi News, हिंदी न्यूज़ , Today Hindi Breaking, Latest Hindi news..

संजीवनी ज्ञानामृतअसत्य भाषण से अपार हानि

“सत्य” सदैव कल्याणकारी तथा शक्तिदायक होता है। सीधी-सच्ची और सही बात कह देने से मनुष्य की बहुत कम हानि होने की संभावना रहती है। ठीक और सही बात सुनकर प्रथम तो कोई भी अच्छा आदमी बुरा नहीं मानता है और यदि सत्य की कठोरता से उसे कुछ नाराजगी भी होती है, तो वह तात्कालिक ही होती है और जल्द ही दूर हो जाती है। सम-स्थिति में आने पर श्रोता सत्य-वक्ता का सम्मान करने लगता है। इसलिए सत्य भाषण से होने वाली सामयिक तथा अस्थायी हानि जल्दी ही पूरी हो जाती है। इसलिए मनुष्य को किसी हानि के भय से असत्य भाषण नहीं करना चाहिए।

असत्य से मनुष्य की अपरिमित और स्थायी हानि होती है। सीधी सही बात को छिपाकर उनके स्थान पर गलत बात कहने के लिए मनुष्य को जिस काल्पनिक प्रसंग की रचना करनी पड़ती है. उसके लिए उसे बहुत अधिक बौद्धिक श्रम अतिरिक्त रूप से करना पड़ता है। ऐसा व्यर्थ श्रम मानसिक संस्थान पर बड़ा भार डालता है। मनोवैज्ञानिकों का कथन है कि वह श्रम जो मनुष्य के मानसिक संस्थान पर अनावश्यक दबाव डालता है मस्तिष्क को निर्बल बना देता है, जिससे अनेक प्रकार के मानसिक तथा बौद्धिक रोग उत्पन्न हो जाते हैं।

 बहुधा देखने में भी आता है कि जो लोग बेकार की गप हाँका करते हैं, किसी बात को तोड़-मरोड़कर कहा करते हैं अथवा सीधी-सच्ची बात को असत्य अथवा अयथार्थ रूप में सामने लाते हैं, वे अपने जीवन में बड़े ही अस्त-व्यस्त, असंतुलित और अविश्वासी होते हैं। उनका स्वभाव बड़ा ही अस्थिर और अस्थायी हो जाता है। यह एक मानसिक रोग होता है। इस रोग से ग्रस्त व्यक्ति जीवन में कोई महत्त्वपूर्ण काम नहीं कर पाता और यों ही अस्त-व्यस्त स्थिति में जिंदगी खो देता है।

सत्य को छिपाकर असत्य बोलने में न केवल उसके खुल जाने के भय का ही त्रास रहता है, अपितु अंतरात्मा में एक चोरवृत्ति का भी विकास हो जाता है। असत्यवादी का स्वभाव इतना तस्कर हो जाता है कि प्रायः वह अपने से भी सच्चाई को छिपाने लगता है। इसके अतिरिक्त उसकी सरल आत्मा से जब तक कि वह पूरी तरह मर नहीं जाती उस चोर वृत्ति का संघर्ष चलता रहता है। यह संघर्ष मनुष्य में अंतर्द्वद्व को जन्म देता है। अंर्तद्वंद्व वह स्थायी ज्वाला होती है, जो मनुष्य की सारी शांति को जलाकर भस्म कर देती है। कोई भी सत्य अपने में एक स्वाभाविक प्रवाह रखता है और अनायास ही अंदर से बाहर को निकलना चाहता है। किंतु असत्यवादी व्यक्ति उसे बाहर जाने से रोकते हैं। बलपूर्वक उसे अंदर ही दबाए रहते हैं। यह अस्वाभाविक प्रयत्न कम कष्टकर नहीं होता। इसमें मनुष्य की शक्ति की बहुत बड़ी मात्रा नष्ट हो जाती है ।