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विहंगम शुभकामनाओ के साथ चैत्र रामनवमी नववर्ष की हार्दिक बधाई व अभिनन्दन, ब्रह्मविद्या विहंगम योग सन्स्थान से विहंगम सन्देश। जरूर पढ़ें।

परम् पुरुष की प्राप्ति ब्रह्मविद्या के विमल प्रकाश में योग युक्ति द्वारा चेतन धाम प्राप्त होने पर होती है। सनातन ब्रह्मविद्या का प्रकाश सृष्टि आरम्भ काल से ही संसार में चला आ रहा है।
               

आधुनिक तत्वज्ञान के वाचक ज्ञान के अतिरिक्त जहाँ परब्रह्म प्राप्ति का कोई अनुभव साधन नहीं है, वह ब्रह्मविद्या नहीं है ,बल्कि मत सम्प्रदाय है । जड़ तत्वों के विज्ञान के लिए जड़ करण हैं और चेतन तत्व को जानने के लिए अनात्म पदार्थो के असंग अवस्था में चेतन करण हैं। चेतन करण द्वारा ही ब्रह्म तत्व का दर्शन होता है। शरीर ,मन,बुद्धि ,वाणी के साधन से परब्रह्म की प्राप्ति नहीं होती ,क्योंकि वह परब्रह्म मन ,बुद्धि इन्द्रियागोचर है । प्रकृति पार वस्तु के लिए प्रकृति पार साधन चाहिए । इसलिए कि वह अप्राकृतिक परब्रह्म इन मन ,वाणी के साधन ,मनोरंजन से दूर   है ।

     इस संसार में जड़ चेतन जगत के बीच विभिन्न आत्माओं में सामंजस्य स्थापित करने वाली जो महान चेतन शक्ति है वह सर्वव्यापी सत्ता है जिसे हम सभी परमात्मा कहते हैं और उस सर्वव्यापी सत्ता का बोध सद्गुरु युक्ति से की जाती है। स्वर्वेद बतलाता है …सबका जीवन प्राण है ,सबका एक आधार ।
                   अज अद्वेत अनाम है , परम् पुरुष करतार ।।
                   सत्य असत्य से अलग है, सो पर सत्य स्वरूप ।
                   अकथ अलौकिक रूप है, अज अनादि वर रूप ।
                 परम् पुरुष अरु आत्मा ,सन्धि निरन्तर योग ।
                जड़ माया व्यापे नहीं, कभी न होय वियोग ।।
इस प्रकार प्रकृति , आत्मा ,काल ,अक्षर ब्रह्म आदि की हम सभी लोग जितनी भी व्याखया करें ,उसकी दार्शनिक विवेचना करें पर यथार्थ बोध के लिए ब्रह्मनिष्ठ आप्त पुरुषों की सहायता के बिना यथार्थ निर्भ्रान्त बोध होना मुश्किल है। सन्तों ने अनुभव के द्वारा उसका सत्य बोध प्राप्त किया है और उन्हीं का कथन सत्य शब्द प्रमाण है।

        भेद बोध तत्वज्ञान है , ब्रह्मनिष्ठ गुरु मान ।
       आप्त सत्य सिद्धान्त है , अन्य गुरु नहीं जान ।।
      सद्गुरु सुकृत देव का ,सत्य अटल उपदेश ।
      यही शब्द प्रमाण है, निर्भ्रान्त  आदेश ।।

हम सभी लोग अपनी आत्मा को सद्गुरु युक्ति विधान द्वारा योग युक्ति से खोजें ,तब सद्गुरु के विमल प्रकाश में अक्षर पार महान चेतन सत्पुरुष प्रत्यक्ष होगा । यह परमपुरुष प्रभु मन,बुद्धि ,वाणी ,इन्द्रिय का विषय नहीं है। चार अन्तःकरण के विलीन हो जाने पर अन्त में कुछ प्रकाश प्राप्त होता है ,यदि प्रभु की श्रद्धा है और उसके दर्शन की इच्छा है तो मन के विषय प्रवाह को बन्द कर दो और ऊपर में जो बन्द ब्रह्मद्वार है उसके ढक्कन को हटाने के लिए श्री सद्गुरु चरणों में आरत दीन अधीन बनकर सद्गुरु सत्ता का ध्यान करो । मन को पवित्र कर सद्गुरु मार्ग द्वारा चलकर तुम प्रभु की प्राप्ति करो ,क्योंकि जब तक चेतन द्वार बन्द है ,हम विवश हैं और प्रकृति पार नहीं हो सकते और आवश्यकता है उत्तकट गुरु के प्रति श्रद्धा और समर्पण की । स्वर्वेद की वाणी कहती है…उत्तकट श्रद्धा गुरु चरण ,खुले सुषम्ना द्वार । यह प्रत्यक्ष प्रमाण है ,बहु भेदी जन पार । सद्गुरु सत्ता विश्वव्यापी चेतना है । सद्गुरु प्रभु का रूप है । सद्गुरु का मिलना ही अनुभव के धरातल पर परम् प्रभु की प्राप्ति का विहंगम उद्देश्य ही मनुष्य जीवन की कृत्यकृत्यता का सार्वभौमिक सन्देश है । सद्गुरु देख रहा है । स्वर्वेद की वाणी कह रही है…है समीप देखे नहीं, वह देखे सब कोय ।
                 जरा मृत्यु नही ताहि में ,कह पण्डित वह कोय ।।
          दुर्लभ सद्गुरु मार्ग है ,भाग्यवान नर पाय ।
              देव सदाफल हरि कृपा ,तब अमरापुर जाय ।।
विहंगम शुभकामनाओ के साथ चैत्र रामनवमी नववर्ष की हार्दिक बधाई तथा अभिनन्दन ,ब्रह्मविद्या विहंगम योग सन्स्थान से विहंगम सन्देश ,जय सद्गुरु देव ।