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विलुप्त हो रहा निश्चय तेरा,तु निज धर्मं भुला कर बैठा ,{आज की कविता } Gyan ki Baat

 

    विलुप्त हो रहा निश्चय तेरा,तु निज धर्मं भुला कर बैठा 

विलुप्त हो रहा  निश्चय तेरा

तु निज धर्म भुला कर बैठा,

 निज अहम भाव की तुष्टि में

तेरा निज कर्म  भुला कर बैठा।….

क्यूं बढ़ रहा नित मोह के पथ पर

जहां तम की गहरी छाया पसरी

ओढ़े तु अज्ञान कि चादर

व्यर्थ ही निज का भान भुला कर बैठा…

देख देख सुवर्ण उच्च महल अटारी 

अंखियां तेरी जार जार बेजार हुईं 

झूठे ही प्रसन्नता के मो द में झूला 

अपनी ही धुन में धुंध को गले लगाकर बैठा….

मौन जो होता हृदय कृंदन से तु

सुख में वृद्धि  सेतु पुल बुनने लगता

क्षण भर जीवन मंच पर अभिनय करता

सोकर उठता फिर स्वप्न जगत को निज समजकर  बैठा..

{अभिलाषा भारद्वाज } मेरी कलम मेरी अभिव्यक्ति