आज हर तरफ भुखमरी देखि है मैंने
आँखों में पानी दर्द में सनी लाचारी देखी है मैंने
बेजुबानों की बात तो छोड़ ही डालो
जुबान भी रोटी को तरसती देखि है मैंने
इंसानों की चाँद बस्तियां भले ही रंगीन हो रही हैं
आज भी सभ्यता में बेबस हड्डियाँ जलती देखि हैं मैंने
रास्तों पर रातों को सूखी आँखों को जागते देखा है मैंने
क्योँ गरीबी का डाह मेरी आँखों को तपन से झुलसाता है
ऐसा तो वीरान हाल मेरे भारत का कभी देखा नहीं मैंने
अभिलाषा {मेरी कलम मेरी अभिव्यक्ति }