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१९ अक्टूबर २०२४ शनिवार-‼️
कार्तिक कृष्णपक्ष द्वितीया २०८१
वक्त एक ऐसा परिंदा है जो अपने पंखों में सब कुछ दबाकर ले जाता है । वक्त के सामने कोई भी नहीं टिक सका है । वह अनवरत है , निरंतर गतिमान है ।
मन मनुष्य का वह द्वार है जिसमें प्रवेश करने के बाद हमारी सम्पूर्ण जीवन की मनो वृति ही परिवर्तित हो जाती है । कहा गया है, “मन हमारा मित्र भी है और शत्रु भी”।
दृष्टिकोण की विकृतियाँ हमें अकारण उलझनों में उलझाती हैं और खिन्न रहने के लिए विवश करती हैं। हम गरीब हैं या अमीर, […]