यज्ञ के माध्यम से स्वयं नारायण जीव को त्रिताप जैसे दैहिक दैविक और भौतिक तापों से मुक्त कर देते हैं। जिस स्थल पर महायज्ञ होता है, वह तीर्थ स्थल से बढ़कर है।जो महायज्ञ के यज्ञमंडप की परिक्रमा हरिनाम संकीर्तन करते हुए करता है उसे अर्थ, धर्म काम और मोक्ष की मोक्ष की प्राप्ति होती है।
ज्ञान की बात

यज्ञ स्थल तीर्थ से बढ़कर है|देवराहाशिवनाथ

बिहिया/भोजपुर| परमपूज्य त्रिकालदर्शी संतश्रीदेवराहाशिवनाथदासजी महाराज के सान्निध्य में बिहिया चौरास्ता स्थित दोघरा में अंतरराष्ट्रीय महायोगी ब्रम्हलीन श्रीदेवराहा बाबाजी महाराज की पुण्यतिथि पर आयोजित श्रीविष्णु महायज्ञ के पांचवें दिन अहले सुबह से ही संतश्रीदेवराहाशिवनाथदासजी के दर्शनार्थ और यज्ञमंडप की परिक्रमा करने के लिए हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। वहीं यज्ञमंडप की पूजा -अर्चना, और हवन भारी बारिश में भी अनवरत जारी है। वहीं नित्य प्रति हजारों श्रद्धालु भक्तों का देश के विभिन्न राज्यों से आना अनवरत जारी है।

वहीं महायज्ञ का प्रसाद हजारों श्रद्धालु भक्त नित्य प्रति ग्रहण कर रहे हैं। वहीं संध्या बेला में यज्ञमंडप के यजमानों और श्रद्धालुओं के द्वारा संतश्रीदेवराहाशिवनाथदासजी महाराज की पूजा -अर्चना की गई। इसके बाद संतश्री ने श्रद्धालु भक्तों को संबोधित करते हुए कहा कि यज्ञ भारतीय संस्कृति के अनुसार ऋषि मुनियों द्वारा जगत को दी गई ऐसी महत्वपूर्ण कार्य है जिससे समस्त पर्यावरण की शुद्धि होती है और पर्यावरण के सिस्टम के ठीक बने रहने का आधार माना जाता है।मनुस्मृति में भी यज्ञ की महिमा को बताया गया है।

भगवान यज्ञ नारायण की महिमा के विषय में मनुस्मृति में बताया गया है कि जिस प्रकार से अग्नि में आहुति प्रदान करने से वह भगवान सूर्य तक पहुंचती है और भगवान सूर्यनारायण उससे वृष्टि करते हैं उच्च दृष्टि से अन्न उत्पन्न होता है तथा अन्न से समस्त प्रजा का पालन होता है।यज्ञ के माध्यम से स्वयं नारायण जीव को त्रिताप जैसे दैहिक दैविक और भौतिक तापों से मुक्त कर देते हैं। जिस स्थल पर महायज्ञ होता है, वह तीर्थ स्थल से बढ़कर है।जो महायज्ञ के यज्ञमंडप की परिक्रमा हरिनाम संकीर्तन करते हुए करता है उसे अर्थ, धर्म काम और मोक्ष की मोक्ष की प्राप्ति होती है।