सद्गुरु भगवान् का अमृत उपदेश:- मन बहुत दिनों से विषयों में लगा है तथा विषयों को भोगा है, विषय किया है। वह मन सहज में आपे-आप न लगेगा, नहीं लगता है।
मन को शनैः-शनैः योगाभ्यास में लगाइये, मन को अभ्यास का स्वभाव बनाइये। मन शनैः-शनैः अभ्यास करने लगेगा, तब कुछ दिनों के बाद शनैः-शनैः शान्त होने लगेगा, फिर मन का सुधार तथा मन भाव में परिवर्तन होने लगेेगा। आज जो नहीं लगता है, वही मन भजन-अभ्यास में लगने लगेगा। इसलिए अभ्यास नियमपूर्वक, नित्य नियम से निशिदिन करें, साधन कभी किसी प्रकार भी न तोड़ें। नियम ठीक-ठीक चलने से मन शान्त होने लगता है। और अभ्यास का अधिकारी होता जाता है। अतः आप मन शान्ति के लिए अभ्यास करें। जो अपना विकृत स्वभाव बन गया है, आपने बना लिया है उस स्वभाव से विरूद्ध साधन-अभ्यास है। वह प्रथम-प्रथम आपके अनुसार कैसे चलेगा, कैसे होगा? कुछ दिनों के अभ्यास, वैराग्य द्वारा उसका सुधार होने लगता है एवं वही मन अभ्यास में लगने लगता है। ‘महाबली स्वभावहि जीता‘ मन-स्वभाव को जीतना सहज काम नहीं है, वह साधन-अभ्यास से शनैः-शनैः ठीक हो जाता है। इसलिए साधन ही जीवन है, साधन ही सार है, साधन ही पुरूषार्थ है। अतः अभ्यास कर मन पर अधिकार करें। बिना साधन के जो मन का दोष है, भजन में न लगना, वह न छूट सकेगा। सदाफाल वाणी भाग -२